प्यार शब्द अब दिलों में नहीं बसते,
वो तो यादों के वादियों में खो-से गए हैं;
ये तो पाषानों की दुनिया हैं,
आदमी भी पत्थर के, और
दिल भी पत्थर से हो गए हैं;
तुम जो कुछ भी कहना चाहो, कह लो
अपनी आवाज़ को लौटता हुआ ही पाओगे;
हम जिस दुनिया में रहते हैं,
वो बुत-सी बनी घाटियों में तब्दील हो गए हैं;
भीड़ भरी लोगो के चेहरों में
एक अजीब-सा सन्नाटा मिलता हैं, अब यहाँ;
यहाँ हर लम्हा गुजरता है अब ऐसे,
जैसे रंग तो बिखरे हैं सब ओर, बस
तस्वीरों में कैद-से हो गए हैं.....
4 comments:
reminds me of Frraz shab's sher :
Ye wafa toh un dino ki baat hai "Faraz"
Jab log sacche aur makaan kacche hua karte the....
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
"तुम जो कुछ भी कहना चाहो, कह लो
अपनी आवाज़ को लौटता हुआ ही पाओगे;
हम जिस दुनिया में रहते हैं,
वो बुत-सी बनी घाटियों में तब्दील हो गए हैं"
बहुत सुन्दर..
thanx to all!!!!
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