Tuesday, March 3, 2009

तुझको क्या अब कहूँ मैं.....



ये कैसा ज़लज़ला है,इस दिल में
हर पल जो उफ़नता रहता है.
कभी आँखों से बहता है,
कभी दिल से रिसता रहता है.

तुझको क्या अब कहूँ मैं,
दिल तो बस रोता रहता है.
कैसे यकीन कर डाला तुझपे,
ये कह के हँसता रहता है.

तेरी कीमत क्यूँ आंकी इस
दिल से मेरे,यही अफ़सोस अब रहता है.
अहसासों की कदर न रही जहाँ,
सरेआम बस तमाशा अब बनता है.

दर्द के इस तूफ़ान में फंस न जाए
कहीं तू भी मेरी तरह,
अपनी किस्मत से अब यूँ डर-सा लगता है.
इसलिए तेरे आँसू भी रख लिए
अपनी चादर के तले,
कि इस दर्द का असर तुझ-पर भी फ़ैल सकता है.

2 comments:

Vinay said...

आख़िरी की लाइनों ने तो मन मोह लिया, बहुत सुन्दर!

चाँद, बादल और शाम

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

thanx... for the nice compliments..