तुम्हारा मेरे जीवन में इस तरह आना,
आके फिर न वापस आने के लिए लौट जाना,
और पीछे ढेर सारी मुश्किलों से मुझे
अकेले लड़ते रहने के लिए छोड़ जाना.
सोचती हूँ, क्या जरूरी था?
मुझे इस तरह के सपने देखते रहना,
हर समय हरे रंग का चश्मा पहने रहना,
और सूरज को दूर क्षितिज में भेज
उसकी गहराई को नापते रहना.
सोचती हूँ, क्या जरूरी था?
तुम्हारी हर बातों को बार-बार दोहराते रहना,
तकलीफ को भी और तकलीफ देकर मुस्कुराना,
और इस तरह तुम्हें सदा के लिए,
स्वयं में आत्मसात कर लेना.
सोचती हूँ, क्या जरूरी था?
तुम्हारे ही जीवन का एक हिस्सा बनना,
तुम्हारी मुस्कुराहट, जरूरत, हर चीज़ का उत्तर बनना,
और तुम्हारे ही हाथों से तुमसे
इस तरह अलग होना, यह स्वीकारना.
हाँ, जरूरी था !
तुम्हारा आना, फिर जाना, अहसासों का घटना-बढ़ना,
दुनिया को तुम्हारे अनुसार चलने के लिए मेरा रुकना,
तुम और तुमसे जुड़े लोगों की ख़ुशी बने रहना,
मेरी हाथों की ह़र लकीरों का मतलब सच होना,
और इन सबके लिए मेरा टूटना.
बहुत जरूरी था.....