Monday, May 24, 2010

जीवन-माला

मोती की भाँति वो सारे पल,
बिताए थे जो तेरे संग कल;
समय के हाथों पिरोते चले गए,
मेरी यादों के धागों में जुड़ते गए.

कुछ पल फिर भी अधूरे-से रह ही गए तो
कुछ की चमक समय के साथ धुलती गई;
और कहीं-कहीं से तो मेरी यादों के धागों में
जाने कैसी और कितनी-ही गाँठें पड़ती गई.

इसलिए,जीवन मेरा इन मोतियों की
सुन्दर माला तो बन न सकी;
पर कोई दुःख भी नहीं,जो मैं
इसे कभी पहन न सकी.

मैंने अब भी इसे वैसे ही
संभाले रखा है;
अपने मन की झरोखे पर
बीचोंबीच टाँगे रखा है.

कि तुम्हें छूकर कोई हवा
कभी तो इस तरफ आएगी;
तुम्हारे छुअन से मेरी ये जीवन-माला
शायद फिर-से निखर जाएगी.

Friday, May 21, 2010

अब तुम भी आ जाओ !

जीवन की तपिश में जलते हुए
तुम्हारी झलक के दो बूँद की प्यासी,
तरसती मेरी आँखें जा टिकी है,
मेरे होस्टल के सामने उसी पेड़ के नीचे,
जहाँ कभी तुमने मेरा इंतज़ार किया था.
यही सपना देखा था न,तुमने और मैंने भी.

पता है, मानसून अब आनेवाला है,
आज तो बूँदा-बांदी भी हुई है.
और अभी से मेरा मन
होस्टल के गेट पे पहरेदारी करने लगा है;
तुम्हारा रास्ता देखने के लिए तो
मेरे साथ-साथ उस पेड़ के पत्तों में
छोटी-छोटी बूँदें भी, जो तुम पर ही
बरसने के लिए जम रही है,व्याकुल होने लगे है.

देखो आधा सपना तो सच होने लगा है न,
अब तुम भी आ जाओ!
इस सपने को पूरा करने के लिए.