मोती की भाँति वो सारे पल,
बिताए थे जो तेरे संग कल;
समय के हाथों पिरोते चले गए,
मेरी यादों के धागों में जुड़ते गए.
कुछ पल फिर भी अधूरे-से रह ही गए तो
कुछ की चमक समय के साथ धुलती गई;
और कहीं-कहीं से तो मेरी यादों के धागों में
जाने कैसी और कितनी-ही गाँठें पड़ती गई.
इसलिए,जीवन मेरा इन मोतियों की
सुन्दर माला तो बन न सकी;
पर कोई दुःख भी नहीं,जो मैं
इसे कभी पहन न सकी.
मैंने अब भी इसे वैसे ही
संभाले रखा है;
अपने मन की झरोखे पर
बीचोंबीच टाँगे रखा है.
कि तुम्हें छूकर कोई हवा
कभी तो इस तरफ आएगी;
तुम्हारे छुअन से मेरी ये जीवन-माला
शायद फिर-से निखर जाएगी.
7 comments:
बहुत भावुक कविता लिखी है आपने
पुरउम्मीद फिर भी हैं आप ,ये अच्छी बात है
जिन्दगी का रहस्य तो बड़े बड़े न सुलझा सके ,हम आप तो कोशिश कर ही रहे हैं
कोशिशें हमारे बाद भी होती रहेंगी
पर ...जिन्दगी ...कैसी है पहेली हाय ......
bhut accha h y jeevan mala jo maan ko itna chu gya
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
अच्छी लगी आपकी कवितायें - सुंदर, सटीक और सधी हुई।
बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
poignant... beautiful
thanx to all!!!!!
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