मैं तेरी याद की पोटली
अब भी रोज खोलती हूँ;
कुछ बची रोटियाँ प्यार की,
वक्त के तवे में गर्म करती हूँ.
फिर कुछ बासी, मगर मीठे पल की
बची – खुची चटनी खोजती हूँ;
नहीं तो, कुछ ताजे सच से उपजे
तीखे मिर्च के साथ ही इन्हें परोसती हूँ.
एक कोने पर चुटकी - भर नमक
तुम्हारी चुप्पी की, चुपचाप पड़े रहती है;
एक टूटा हुआ मन का गिलास,
अश्रुओं से अब भी लबालब रहता है.
मेरे एकाकीपन की थाली में
तुम रोज कुछ बन के आ जाते हो;
कैसे करूँ शिकायत तुमसे मैं?
किसी रात भूखे भी तो नहीं रहने देते हो.
34 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
बेहतरीन अभिव्यक्ति... बेहद खूबसूरत!
कैसे करूँ शिकायत तुमसे मैं?किसी रात भूखे भी तो नहीं रहने देते हो.
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....मेरा ब्लॉग पर आने और हौसलाअफज़ाई के लिए शुक़्रिया..
बहुत खूब लिखा आपने !
शब्द भाव भरे, धन्यवाद.
वाह क्या बात है..
बहुत ही खूबसूरत कविता..
आभार
उफ़!क्या कहूँ? गज़ब का भाव संयोजन।
देर हुई आने में हमको, शुक्र है फिर भी आये तो....
वंदना जी .....
आपकी तबियत तो ठीक हैं न???? :):)
इतनी सुन्दर पंक्तियाँ...
मीठे पल की बची – खुची चटनी.. वाह..क्या शब्द ढूँढ के लायी हैं...
वाह...
११/१०
हे हे हे...
क्या बात है जी...आज अंदाज़ थोड़े बदले हुए से दिख रहे हैं आपके...
दिल खुश कर दिया जी आपने..
शुक्रिया :)
kuch kahne se behtar hai in shabdon ke namak ka swaad chakh lun
और हाँ वंदना जी...मेरी पहेलियों को अभी भी आपकी तस्वीर का इंतज़ार है..
बेस्ट ऑफ़ लक फॉर नेक्स्ट संडे ...
फिलहाल मेरे ब्लॉग पर...
मुट्ठी भर आसमान...
vandana ji apni rachna vatvriksh ke liye bhejen , yaa izaazat den ki main khud chayan karun
wow Vandana... really incredible... कितने प्यार से उसके प्यार को, यादों को समेत लिया है... लाजवाब...
ला-जवाब भोज्य बिंब उकेरे है, आपने शब्दो में।
……विरह की सामग्री,पीडाओं की धाप……
मर्मस्पर्शी सम्वेदनाएँ
मजेदार शिल्प में गहरी संवेदना
संजय जी, यशवन्त जी,संजीव जी, प्रतीक जी, वंदना जी, शेखर, अभि, रश्मि जी, पूजा, सुज्ञ जी, अरविन्द जी आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया पोस्ट में पधारने के लिए.
@ वंदना जी, अब तो आपका आगमन आम हो गया है. आप अगर न आई तो जरूर कुछ कमी लगेगी. यूँ ही समय देती रहिएगा, बहुत अच्छा लगता है.
@शेखर, आप आये तो सही, नहीं भी आते तो हम बुला लाते. हमारी तबियत बिलकुल चंगी है जी. आप ही सही मायने में उस्ताद हो जी. ११ नंबर वैसे भी शुभ दीख रहा है. धन्यवाद स्वीकार करे श्रीमान!
और अब आपने तो पहेली के पहले मुश्किल रख दी है. अब तो इस संडे जोर-आजमाइश की जायेगी. नहीं भी तो आना जाना तो लगे ही रहेगा!
@अभि, अंदाज ही बदला है. हमारा ब्लॉग वही का वही है, भूल नहीं जाईयेगा. समय समय पर टहलकदमी करने यहाँ भी जरूर आयें.
@रश्मि जी, देरी के लिए क्षमा. मेल भेज दिया गया है. आभार आपका.
:) as usual nice... :)
वंदना जी,
नए प्रतिविम्बों नें आपकी कविता को नई उंचाई प्रदान किया है !
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति !
बधाई हो !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
वाह! बेहतरीन रचना!
अच्छी लगी आपकी शिल्पकारी . प्रेम की भाव प्रवण अभिव्यक्ति .
adbhut soch hai aapki .
एक टूटा हुआ मन का गिलास,
अश्रुओं से अब भी लबालब रहती है.
labaalab rahataa hai kaisaa rahegaa.
राहुल, ज्ञानचंदजी, शाह नवाज जी, आशीष जी,unkavi जी धन्यवाद आपका.
@unkavi जी, मैं भी यही सोच रही थी. अच्छा हुआ आपने भी कह दिया. अब मैंने उसे लबालब रहता है कर दिया है. ध्यान दिलाने के लिए धन्यवाद!
भूख लग गयी कविता पढ़ते हुए ...
अनूठे बिम्ब !
क्या बात है...बहुत ही ख़ूबसूरत लिखा है.
बड़े ही प्यारे बिम्बों के साथ प्यारी सी रचना
वंदना,
सात बजे नहीं हैं अभी, कविता पढ़ के भूख लग आयी है.
खूबसूरत!
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!
वंदना,
सात बजे नहीं हैं अभी, कविता पढ़ के भूख लग आयी है.
खूबसूरत!
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!
हुआ मन का गिलास,
अश्रुओं से अब भी लबालब रहता है,
कविता में भावएक कोने पर चुटकी भर नमक
तुम्हारी चुप्पी की, चुपचाप पड़े रहती है,
एक टूटा नाओं का सैलाब सा उमड़ रहा है।
उत्तम रचना...बधाई।
वाणी जी, रश्मि जी, आशीष जी और महेद्र जी आभारी आप सबों की.
@ आशीष जी, भूख लगते रहनी चाहिये......नहीं तो बैचलर पोहा का क्या होगा?
Mujhe tajjub h k itna mast blog ab tak kaise meri nigaaho se dur raha? Sabhi rachnaayein padhi behad pasand aayi..har kavita jaise mere mann ki baat kehti huyi///magar ye poem dil k zyada kareev si lagi...
Keep writting..coz nw on i 2 m added as ur fan :)
प्यारी मोनाली, ताज्जुब होना एक सुखद अहसास है. चलिए मुझे भी तो आप पहली बार दिखे. आपके ब्लॉग पर भी गयी. अभी फोलो कर लिया है. अब आपको मैं समय समय पर ताज्जुब करने जरूर आऊगी.
और हाँ ! ब्लॉग पर पहली बार आने के लिए बहुत आभार आपका!
वंदना जी .....कमाल की कविताएँ हैं आपकी..दिल खुश कर दिया..
@ साकेत: अजी आपका दिल खुश हो गया यह जानकर हम भी खुश हो लिए.
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