Tuesday, March 12, 2013

अनी - बनी

उसका बस यही एक सपना था, सबकी तरह ही, मगर उसके अनुसार सिर्फ और सिर्फ उसी का, कि इक दिन इक राजकुमार आएगा उसकी भी ज़िंदगी में। घोड़े पे सवार होकर..... उसने ऐसा नहीं सोचा था, मगर हाँ..... वो जब आएगा तो सब कुछ बदल जाएगा..... खुशियों में..... कुछ ऐसा ही। उसके सपने को शब्दों में बयान करना शायद खुद उसके लिए भी बहुत मुश्किल था। अब तो बस वो पल ही बता सकता था कि उसका सपना क्या था?  बस उस पल का इंतज़ार करते-करते उसे 32 बरस लग गए..... सिर्फ उसे ही। कहानी लिखने वाला तो उसी पल उस राजकुमार के साथ आया था,  इसलिए उसका यह बता पाना कि अपने सपने का इंतज़ार करना कैसा लगता है? मुश्किल होगा। हाँ.... अगर उस पल के ठीक पहले वाले पल को महसूस भर कर लिया जाए, तो भी उस पगली के इंतज़ार को थोड़ा-बहुत समझा जा सकता है।

कहानी जारी किया जाएगा.............................

Friday, February 1, 2013

नश्तर एहसास.....


क्यूँ नहीं मिलते शब्द
जिनपे उड़ेल डालूँ
अपने ज़िंदा होने का अहसास।

मुझमें नहीं बची है,
रत्ती-भर भी ज़िंदगी,
ये बात कैसे जताऊँ।

मुझे समय के पहिये को
तोड़ कर जलाना है,
अपनी तपिश में।

उस जलन में खुद को
फिर स्वाहा कर देने का
अहसास भी तो पाना है।

ये अब खेल नहीं रहा,
ज़िंदगी की बिसात पर,
अब और कोई चाल बाकी नहीं है।

पत्ते की तरह बिखर कर
किसी हवा के सरकने का
इंतज़ार करना, अब बाकी नहीं है।

किस्मत, जिंदगी, प्यार, दर्द
सब तेरी माया ही होगी,
मगर अब तू भी असरदार नहीं है।

ये ज़िंदगी है तुम्हारी दी हुई गर,
तो तू भी मान ले अब कि
और तोड़ने की अब तेरी औकात नहीं है।