Friday, August 1, 2008

सबब



हर रात,
तुझे मैं याद करती हूँ.
खिड़कियों से बाहर आसमान
को देखते हुए सोचती हूँ-
कहीं तू भी तो नहीं
याद कर रहा होगा मुझे इस तरह,
जाने किन परेशानियों से
जूझ रहा होगा तू अकेला,किस तरह.
एक ख्याल फिर ये भी चला आता है-
कि तुझसे बातें ही कर लूँ,
मन को तसल्ली सा होता है, जब भी
तेरे चेहरे के शिकन को कम होता देख लूँ.
तब ही जाने कहाँ से, कोई झोंका
यादों का मुझे छू के चला जाता है,
-तेरी परेशानियों का सबब मैं तो नहीं,
कुछ ऐसा ही, मेरे इर्द-गिर्द गुनगुनाते हुए,
एक और काँटा
हर रात,
मेरे दामन में चुभो के चला जाता है...

1 comment:

Unknown said...

गहराई है आपकी कविता में।