Thursday, August 7, 2008

मेरी खामोशी!!



आज भी
मेरे कमरे में, वो
हमेशा की तरह झाँक रही है.
मेरे सुख व दुःख,
आक्रोश व पश्चात्ताप,
जय व पराजय,
जैसे हर क्षण का सदियों से, वो
हिसाब रख रही है.
कभी तुम्हें-भूल मुझे सुलाने की प्रयत्न,
तो कभी तुम्हारी-ही याद में
जगे रहने की मनुहार करती है वो.
एक क्षण को तो तुमसे ही
दूर कर जाती है वो,
तो दूसरे ही क्षण तुम्हारी
ही बातें गुनगुनाती रहती है वो.
मेरे सबसे करीब रहते हुए भी
क्यूँ तुम इतनी दूर रहती हो,
कभी बुरी, तो कभी इतनी अच्छी क्यूँ लगती हो.
"अमावस की रात में भी रोशनी के दायरें मिलते हैं,
चाँद नहीं तो क्या हुआ, सितारें भी चमकते हैं"- यूँ कहते हुए
तुम कितना मुझे समझाती हो.
हाँ! मेरी खामोशी,
मेरा कितना ख्याल तुम रखती हो.

Friday, August 1, 2008

सबब



हर रात,
तुझे मैं याद करती हूँ.
खिड़कियों से बाहर आसमान
को देखते हुए सोचती हूँ-
कहीं तू भी तो नहीं
याद कर रहा होगा मुझे इस तरह,
जाने किन परेशानियों से
जूझ रहा होगा तू अकेला,किस तरह.
एक ख्याल फिर ये भी चला आता है-
कि तुझसे बातें ही कर लूँ,
मन को तसल्ली सा होता है, जब भी
तेरे चेहरे के शिकन को कम होता देख लूँ.
तब ही जाने कहाँ से, कोई झोंका
यादों का मुझे छू के चला जाता है,
-तेरी परेशानियों का सबब मैं तो नहीं,
कुछ ऐसा ही, मेरे इर्द-गिर्द गुनगुनाते हुए,
एक और काँटा
हर रात,
मेरे दामन में चुभो के चला जाता है...