समय के इस मोड़ पर
जाने कबसे मैं बैठी
सोच रही हूँ।
किस ओर आगे बढूँ,
सभी दिशायें तो मैं
तक रही हूँ।
हवाएं भी भटका देती है,
कभी-कभी, जिधर देखो वहीँ-से
लगता बह रही हो।
सूरज के किस किरण को
पकड़ के आगे बढूँ, आंखों में
जब सब चुभ रही हो।
पशोपेश में तो हूँ, राह फ़िर भी
चुन लुंगी मैं, मन इतना तो
दृढ़ हो रहा है।
रुकी हूँ तो बस तुम्हारे लिए,
इक इंतजार तुम्हारा दिल अब भी
कर रहा है।
Thursday, April 9, 2009
Saturday, April 4, 2009
चलना न उस राह पर......
निकलोगे जो मंजिल की तलाश पर
मिलेंगे सौ कंकड़ तुझको राह पर।
पूछ लेना मेरा नाम उनसे, जो
पहचान ले तो चलना न उस राह पर।
क्यूँकि कभी हम भी चले थे उस डगर पर,
और जा पहुँचे किसी मायूसी के घर पर।
मिलेंगे सौ कंकड़ तुझको राह पर।
पूछ लेना मेरा नाम उनसे, जो
पहचान ले तो चलना न उस राह पर।
क्यूँकि कभी हम भी चले थे उस डगर पर,
और जा पहुँचे किसी मायूसी के घर पर।
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hindi poem,
हिंदी कविता
मैं 'कस्तूरी मृग'....
तुम मौसम भी होते,
तो इंतज़ार रहता
बार-बार तेरे वापस आने का.
तुम परछाई भी होते,
तो अहसास रहता
हर पल तेरे पास होने का.
तुम तनहाई भी होते
तो मन करता
तेरी बाँहों में लिपट के सो जाने का.
तुम ख्वाब भी होते,
तो जी करता
तुझको आँखों में बसा लेने का.
तुम महावर भर भी होते,
तो रंग तुम्हारा ही रहता
तन-मन के हर कोनों का.
तुम स्याही भी होते,
तो लिखती हर जीवन-अध्याय
नाम होता तेरा मेरे हर पन्नों का.
तुम खुशबु भी होते,
तो छुपा लेती नाभि में
मैं 'कस्तूरी मृग' चाहूँ तुझमें ही में खोने का.
तो इंतज़ार रहता
बार-बार तेरे वापस आने का.
तुम परछाई भी होते,
तो अहसास रहता
हर पल तेरे पास होने का.
तुम तनहाई भी होते
तो मन करता
तेरी बाँहों में लिपट के सो जाने का.
तुम ख्वाब भी होते,
तो जी करता
तुझको आँखों में बसा लेने का.
तुम महावर भर भी होते,
तो रंग तुम्हारा ही रहता
तन-मन के हर कोनों का.
तुम स्याही भी होते,
तो लिखती हर जीवन-अध्याय
नाम होता तेरा मेरे हर पन्नों का.
तुम खुशबु भी होते,
तो छुपा लेती नाभि में
मैं 'कस्तूरी मृग' चाहूँ तुझमें ही में खोने का.
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