समय के इस मोड़ पर
जाने कबसे मैं बैठी
सोच रही हूँ।
किस ओर आगे बढूँ,
सभी दिशायें तो मैं
तक रही हूँ।
हवाएं भी भटका देती है,
कभी-कभी, जिधर देखो वहीँ-से
लगता बह रही हो।
सूरज के किस किरण को
पकड़ के आगे बढूँ, आंखों में
जब सब चुभ रही हो।
पशोपेश में तो हूँ, राह फ़िर भी
चुन लुंगी मैं, मन इतना तो
दृढ़ हो रहा है।
रुकी हूँ तो बस तुम्हारे लिए,
इक इंतजार तुम्हारा दिल अब भी
कर रहा है।
4 comments:
दिल ऐसा ही होता है ...और मोहब्बत भी
बहुत प्यारा लिखती हैं आप
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
इंतजार की अभिव्यक्ति अच्छी है.
बधाई.
सूरज की किरने पकड़ना एक सुखद काव्य अनुभूति देता है!
Hi Vandana... hope u are doing good in health and memory:-) this is piyush(ranjan)BIT. luckily got to catch you here on ur blog... all the compositions are really really wonderful...
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