औरों की तरह तुम्हें ढेर सारी
शुभकामनाएं देने का,
तुम्हारे साथ तुम्हारी हर ख़ुशी का
इक छोटा-सा हिस्सा बन जाने का.
"तुम भी बुढ्ढे हो गए अब!"-
यह कह के तुम्हें चिढ़ाने का,
तुम्हारे dracula जैसे दाँतों को
अपनी शरारतों से चमकाने का.
ढेर सारी मोमबत्तियों के बीच
केक की जगह अपना दिल सजाने का,
और तुम्हारे हाथों कट के तुम्हारे मुख
से होते हुए तुम्हारे दिल में घर कर जाने का.
कैसे कहूँ तुमसे कि मुझे भी मन है,
औरों की तरह तुम्हारे संग
तुम्हारा जन्मदिन मनाने का,
और भेंट-स्वरुप तुम्हें चुपके-से एक
potassium-iodine-sulphur-sulphur
तुम्हारे मस्तक में दे जाने का.
4 comments:
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
आप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं
lambe samay se koi nayi post nahi aayi...
kya baat ?
sab changa hai na ?
अनिल जी, देरी के कई कारण बन जाते है. इस बार मगर मन ने खुद को कारण बना रखा था. कुछ लिखने की इच्छा नहीं हो रही थी. और कुछ व्यस्तता भी थी. आपने पूछा तो मन भर आया. और मन ने अपनी जिद छोड़ दी.
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