नहीं चाहते हुए भी
अब लिखना चाहती हूँ,
मैं कलम की स्याही में ही सही,
तुझे ढूँढना चाहती हूँ.
तुझे उम्मीद बनाकर मुठ्ठी में
अपनी भींचना चाहती हूँ,
हाथ की लकीरों को मैं जैसे
अब भी बदलना चाहती हूँ.
फैला के तस्वीरों को बिस्तर में
तुझे टटोलना चाहती हूँ,
मैं सोई नहीं बरसों,
तेरी बाँहों में सिमटना चाहती हूँ.
तुझे इस कदर मैं इस मन में
छुपा कर रखना चाहती हूँ,
होगी सूरत कहीं तेरी कि मेज पर
जमे गर्द को भी सहेजना चाहती हूँ.
जो तुमसे अलग करे मुझे
उस रौशनी को रौंदना चाहती हूँ,
तम में लिख के नाम तुम्हारा
मैं ताउम्र यूँ ही जीना चाहती हूँ.
सुन सकूँ तुम्हें जिस चुप्पी में
उस क्षण को बस रोकना चाहती हूँ.
तुम आज भी वैसे ही हो मेरे,
बस यही भ्रम पालना चाहती हूँ.
30 comments:
एहसास के धरातल पर चाहत एक पड़ाव है.
सुन्दर एहसास की रचना
सुन सकूँ तुम्हें जिस चुप्पी में
उस क्षण को बस रोकना चाहती हूँ.....सुन्दर
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सुन सकूँ तुम्हें जिस चुप्पी में
उस क्षण को बस रोकना चाहती हूँ.
तुम आज भी वैसे ही हो मेरे,
बस यही भ्रम पालना चाहती हूँ.
बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति!
3.5/10
अभिव्यक्ति की अच्छी कोशिश
प्रेम से सराबोर रचना
उस्ताद जी कि तो ऐसी की तैसी....बहुत ही बेहतरीन रचना है वंदना जी...
काफी सकारात्मक सोच से भरी हुई...प्रेम ही प्रेम छलक रहा है...
जो तुमसे अलग करे मुझेउस रौशनी को रौंदना चाहती हूँ,तम में लिख के नाम तुम्हारामैं ताउम्र यूँ ही जीना चाहती हूँ.
ये लाइन पढ़ कर तो बरबस ही चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई.
मैं कलम की स्याही में ही सही,
तुझे ढूँढना चाहती हूँ..
स्याही में ढूंढते ढूंढते क्या होता है पता है..?
तुझे शेर अच्छे लगते थे न
देख आक आज ग़ज़लों की किताब हो गया हूँ.
तू उलझती थी उन दिनों मुझे समझने में
आके देख एक आसान सा हिसाब हो गया हूँ.
कभी था मैं भी ढूँढने वाला.
भावुक कविता , लेकिन यह सही रहा कि भावुकता किसी आदर्शलोक में गुम नहीं गो रही है , बल्कि हांड-मांस के जीव के स्वाभाविक प्रेम का आग्रह इसे ठोस बना रहा है ! पर प्रीति-पथ में भ्रमों के बने रहने की बात करके क्या आपने कविता के लौकिक-प्रवाह में अवरोध नहीं डाला ?? आभार !
प्यार से तर, निराशाओं को किनारे करती हुई, सुन्दर सी रचना...
कलम की स्याही लिखने की चाहत,
आशावान बनाती है!
उम्मीद की मुट्ठी कर्म की लकीरे,
तक़दीर बदलना जानती है!
फैला के तस्वीरों को बिस्तर में आज को ठुन्ठो,
आशा ही उम्मीद की किरण जगाती है!
कौन अलग कर सकता है तुमसे,
तुम जिसे अपने दिल में बसना जानती हो!
ये भ्रम नहीं हकीकत है,
उस छन को बस रोकना है,
जिसे तुम अपना बनाना चाहती हो!!
अच्छी कविता मन के भावो की सुंदर अभिव्यक्ति यू ही लिखते रहो
वर्मा जी, सदा जी, यशवन्त जी सराहना के लिए धन्यवाद!
उस्तादजी आपने समय निकाल कर पढ़ा, उसके लिए धन्यवाद. धीरे-धीरे आप हिंदी ब्लॉग में और भी व्यस्त हो रहे होगे.
शेखर जी कविता को पसंद करने के लिए शुक्रिया, एक बात कहूंगी, रेटिंग तो एक relative term है, कौन कितना बुरा है,कितना सही है, कितना गलत है, ये सब का निर्धारण सबकी नज़रों में अलग-अलग होता है. सुविधा के लिए हम किसी एक को मानक के रूप में मान लेते है. है ना!!! फिलहाल आपने इतना पसंद किया उसी से मन खुश हो गया है.
संजयजी! शुक्रिया!!!!!
राठौर जी, आपने तो मुझे एक पल के लिए डरा ही दिया था कि मैंने क्या किया? शुक्र हो कि बाद में समझ में आया कि आप लिखते ही हो ऐसे. जोर का झटका झकझोर के देने लिए शुक्रिया. ढूंढते रहने से क्या होता है यह बताने के लिए भी, क्या करूँ सिर्फ अपने हिसाब से ही ज्यादा सोचा है मैंने शायद, आज एक पल को ही सही आपके हिसाब से भी देख लिया.....
अमरनाथ जी, आपकी बात भी सही है. भ्रम में रहना शायद यथार्थ से दूर होना है. क्या करूँ मगर बचपन से मुझे ख्यालों की दुनिया ज्यादा सच लगती थी, अब धीरे-धीरे वो ख्याल टूट रहे है. धीरे-धीरे यथार्थ के धरातल पर पैर रखने का साहस भी आ जायेगा.
पूजा! आपको भी धन्यवाद!
अमरजीत जी! आपके जवाब की मैं कायल हो गयी. अच्छा लगता है, जब कोई आपको इस तरह से मार्गदर्शन करवाता हो. सोच को नयी राह देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
वंदना जी, बहुत खूब। वास्तव में जीवन भी तो एक भ्रम ही है।
---------
सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
"जो तुमसे अलग करे मुझे
उस रौशनी को रौंदना चाहती हूँ,
तम में लिख के नाम तुम्हारा
मैं ताउम्र यूँ ही जीना चाहती हूँ"
खूबसूरत अल्फ़ाज़,पढ़ने में बहुत अच्छी लगी आपकी रचना।
अरे जो करना है कर दीजिए...सोचिये मत...
सभी तो इतने प्यारे प्यारे काम हैं....जैसे "हाथों की लकीरों को बदलना...बाहों में सिमटना...मन में छुपाना..."
:)
इतने दिनों के अंतराल पे काफी पढ़ने को बाकी है, अभी सब पढता हूँ...रुकिए :)
जाकिर जी, मोसम जी और अभि जी धन्यवाद आपका.
अभि जी अब तक तो सोच रही थी आपने हौसला दिया है तो अब कर ही डालते है.
khara bolta hoon, khatarnaak lagta hoon..khamosh rahta hoon , koob sochta hoon.. jab juban kholta hoon ...na darane ke liye ..na balane ke liye ..bas dil ke zazbaat batane ke liye ..
तो फ़िर यही शास्वत सत्य है
वाह
ताज़ा पोस्ट विरहणी का प्रेम गीत
तुम आज भी वैसे ही हो मेरे,
बस यही भ्रम पालना चाहती हूँ.
प्रेम से सरोबार रचना है आपकी
प्यारी रचना के हार्दिक बधाई
जो तुमसे अलग करे मुझे
उस रौशनी को रौंदना चाहती हूँ,
तम में लिख के नाम तुम्हारा
मैं ताउम्र यूँ ही जीना चाहती हूँ.
ये तो खतरनाक मामला नजर आ रहा है :))
चुप ही ठीक हैं हम तो :)
पब्लिक को समझ में आया होगा अपने तो ये बातें समझ नहीं आ रही :))
ये फोलो अप कमेन्ट के लिए कमेन्ट है :)
कोई नहीं हर चीज़ समझने के लिए थोड़े जो होती है.
वंदना जी यहाँ भी पधारे ...कहना तो पड़ेगा .............
very nice and aap ne aap ne bare me bhi atchha likha hai
ashok
नहीं चाहते हुए भी
अब लिखना चाहती हूँ,
मैं कलम की स्याही में ही सही,
तुझे ढूँढना चाहती हूँ.
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सुन सकूँ तुम्हें जिस चुप्पी में
उस क्षण को बस रोकना चाहती हूँ.
तुम आज भी वैसे ही हो मेरे,
बस यही भ्रम पालना चाहती हूँ ...
खूबसूरत एहसास है इस रचना में ... लाजवाब कल्पना है ....
आपको और आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनाएं ....
आप को सपरिवार दिवाली की शुभ कामनाएं.
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आपको, आपके परिवार और सभी पाठकों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएं ....
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दीपावली के इस पावन पर्व पर आप सभी को सहृदय ढेर सारी शुभकामनाएं
hi... happy diwali and happy new year
बदलते परिवेश मैं,
निरंतर ख़त्म होते नैतिक मूल्यों के बीच,
कोई तो है जो हमें जीवित रखे है,
जूझने के लिए है,
उसी प्रकाश पुंज की जीवन ज्योति,
हमारे ह्रदय मे सदैव दैदीप्यमान होती रहे,
यही शुभकामनाये!!
दीप उत्सव की बधाई...................
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