Friday, November 26, 2010

अब भी तुम्हारी याद बहुत आती है.....

अब भी तुम्हारी याद बहुत आती है,
हर शाम के साथ तुम्हारे नाम की तनहाई
मेरे कमरे में चली आती है;
मैं भी रोज मन के ताले खोल
बीते पलों की चादर बिछाने लगती हूँ.

जोड़ती हूँ बारम्बार उन टूटी हुई खुशियों को,
तुम फिर से नये बिम्ब में उभर आते हो;
वक्त की दरारें साफ़ झलकती है, फिर भी
तुम उन दरारों के ओट से जाने कैसे मुस्कुराते हो?

इक-इक चीज़ अब भी वैसी ही सहेजी है,
जैसे तुम छोड़ गए हो;
बस वो बादाम के छिलके,
नाम लिखा था तुम्हारा जिन पर,
शायद तुम्हारे पास ही रह गए है.

एक लाल रंग का ऊन का धागा
अब भी उँगलियों के बीच फंसता है;
दूसरे सिरे पर तुम्हारे हाथ अब भी हो
शायद, मुझको जैसे यह बतलाता है.

तुम्हारे एक कुरियर का इंतज़ार
मन अब भी करते रहता है;
भूल चुके जिस ‘overall’ को तुम,
उसमें जमी ग्रीस की महक मुझे
अक्सर मृगतृष्णा की दौड़ दौड़ाती है.

इन सब के बावजूद भी तुम मेरे ख्यालों को
और गुमराह करने से बाज नहीं आते हो;
अपनी इक ड्रैकुला-वाली हँसी सुनवा के
इक घुँघरू अपने मौजूद होने के भ्रम का,
मेरी चुन्नी में टाँक जाते हो.

जानती हूँ तुम नहीं आनेवाले,
मन की आस मैं रुकने नहीं देती;
बुझे हुए दीये के साथ ही सही
मन दूर तलक फैले अँधियारे में
अब भी बहुत हिम्मत कर जाता है.


*Overall-- एक प्रकार का वस्त्र जो अक्सर मशीनरी काम करते वक्त पहनते है. शर्ट और पैंट को जैसे कमर से जोड़ दिया गया हो और गले से पैर तक चेन लगा रहता है.

52 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बीते पलों कि चादर , उन का टुकड़ा बादाम के छिलके ...बहुत नए बिम्ब प्रयोग किये है ....बहुत खूबसूरत रचना

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

संगीता जी सराहना के धन्यवाद आपका.

rajesh singh kshatri said...

बहुत बढ़िया ...
लाजवाब ...

abhi said...

कल आया और आज फिर आया...और तीन नए पोस्ट पाया..
वाह जी वाह..मजा आ गया..पिछले आधे घंटे से आपके ब्लॉग पे अटका हुआ हूँ :)

लव आज कल भी पढ़ लिया...:)

केवल राम said...

वक्त की दरारें साफ़ झलकती है, फिर भी
तुम उन दरारों के ओट से जाने कैसे मुस्कुराते हो?

एकदम मर्मस्पर्शी पंक्यियाँ ...दिल की गहराई से निकली हुई ...और दिल में असर कर गयी ...बहुत खूब ...शुक्रिया
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

संजय भास्‍कर said...

वन्दना जी
नमस्कार !
क्या बात है......बहुत खूब..
...आपने लफ्ज़ दिए है अपने एहसास को ... दिल छु लेने वाली रचना ...
मेरी मंजिल.......संजय भास्कर
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...
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संजय भास्‍कर said...
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संजय भास्‍कर said...

वंदना जी,

आजकल प्रेम से समन्धित विषयों पर बड़ी अच्छी रचनाएँ लिख रही हैं, .....शुभकामनायें |

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूबसूरत रचना...याद को आपने बखूबी परिभाषित किया है

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

वंदनाजी
नमस्कार !

नव भाव बोध की एक सुंदर रचना के लिए आभार !
तुम्हारे नाम की तनहाई
मेरे कमरे में चली आती है;
मैं भी रोज मन के ताले खोल'
बीते पलों की चादर बिछाने लगती हूं …

एक चित्र खींच दिया आपने … बहुत ख़ूबी के साथ …
पूरी कविता अच्छी है ,
बधाई !

शुभकामनओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

एक बेहद साधारण पाठक said...

@Vandana जी

हाँ ... शब्दकोष बढ़ाया जा रहा है [overall के मीनिंग से ] मैं खुद भी यही पूछता अगर कुछ पूछता तो :)

मन की गहराई में डूबकी लगाकर कितने साधारण "मोती" चुनती हैं आप ...फिर भी नाजुक से "धागे" से जोड़कर हमेशा एक बेशकीमती "माला" तैयार हो जाती है

मोती = शब्द
धागा = भावनाएं
माला = रचना

एक बेहद साधारण पाठक said...

इस सुन्दर रचना को सुबह सुबह पढ़ा है .... आज का दिन अच्छा जाएगा :)

Yashwant R. B. Mathur said...

वंदना जी !
क्या लिखती हैं आप भी!.....एक एक शब्द में जान डाल दी है आप ने.
पढ़ते पढ़ते लगा मानो वास्तविकता को कल्पना में मिला कर आप ने कोई चित्र बना दिया हो.

निर्मला कपिला said...

जानती हूँ तुम नहीं आनेवाले,
मन की आस मैं रुकने नहीं देती;
बुझे हुए दीये के साथ ही सही
मन दूर तलक फैले अँधियारे में
अब भी बहुत हिम्मत कर जाता है.
बीते पलों को सहेजना कितना मुश्किल होता है। बहुत भावमय कविता है। शुभकामनायें।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

Overall me jamee grease ki mahak iss kavita se bhi aa rahi hai...:)

bahut aatmiyata se paripurn rachna..
badhai..

POOJA... said...

wow vandana... well written... totally dipped with the memoirs... grt

amar jeet said...

वंदना जी बहुत अच्छी, रचना शब्दों का सुंदर तालमेल !किन्तु एक बात समझ नहीं आई बादाम के छिल्को पर नाम कैसे लिखा जाता होगा !मैंने तो बहुत प्रयास किया .........................................................

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

आप सबों का धन्यवाद!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

गौरव जी आपकी बात बहुत अच्छी लगी, मोतियोंवाली. खूब परिभाषित किया आपने.
और हाँ...... आपका हर दिन अच्छा जाए.शुभ प्रभात. मेरे लिए तो अभी ही सुबह हुई है. हे हे हे हे

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

अमरजीत जी, ये तो बेहद आसान है, वो वाले बादाम जिनके कवर अखरोट जैसे कड़े होते है. उन पर आप पेंट करके कुछ भी लिख सकते हो, और ये बहुत दिनों तक रहते भी है.

सदा said...

वक्त की दरारें साफ़ झलकती है, फिर भी
तुम उन दरारों के ओट से जाने कैसे मुस्कुराते हो?

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द बिल्‍कुल सजीव चित्रण ...।

Rahul Ranjan Rai said...

After reading it i felt, i wanted to say it... my feelings and you gave the words..... nice....
i'm visiting your blog first time too....

दिगम्बर नासवा said...

Dil meien uthte bhaav ko jas ka tas rakh diya hai ... aise hi likti rahen ...

priyankaabhilaashi said...

बहुत सजीव चित्रण..!!

मंजुला said...

बहुत सुन्दर रचना है आपकी ....मन की भावनाओं को हुबहू उतारा है आपने ...बहुत बढ़िया .......कभी समय मिले तो मेरी प्रोफाइल तक भी आईये......

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

जानती हूँ तुम नहीं आनेवाले,
मन की आस मैं रुकने नहीं देती;
बुझे हुए दीये के साथ ही सही
मन दूर तलक फैले अँधियारे में
अब भी बहुत हिम्मत कर जाता है.

bahut सुन्दर !

Arvind Mishra said...

अनंत चाह की सुन्दर सुकोमल अभिव्यक्ति

vandana gupta said...

सुकोमल भावों का सुन्दर समन्वय।

M VERMA said...

कितने खूबसूरत बिम्ब बुने हैं आपने


तुम उन दरारों के ओट से जाने कैसे मुस्कुराते हो?'

या फिर
अब भी वैसी ही सहेजी है,जैसे तुम छोड़ गए हो;बस वो बादाम के छिलके,नाम लिखा था तुम्हारा जिन पर,शायद तुम्हारे पास ही रह गए है.
बहुत खूबसूरत और आकर्षक रचना

Shah Nawaz said...
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Shah Nawaz said...

बेहतरीन अभिव्यक्ति... बेहद खूबसूरत!

प्रेमरस.कॉम

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) said...

अब भी तुम्हारी याद बहुत आती है,
हर शाम के साथ तुम्हारे नाम की तनहाई
मेरे कमरे में चली आती है;
मैं भी रोज मन के ताले खोल
बीते पलों की चादर बिछाने लगती हूँ.

जोड़ती हूँ बारम्बार उन टूटी हुई खुशियों को,
तुम फिर से नये बिम्ब में उभर आते हो;
वक्त की दरारें साफ़ झलकती है, फिर भी
तुम उन दरारों के ओट से जाने कैसे मुस्कुराते हो?

bahut khoobsurat chitran hai unke naam ki tanhayi ka... dhanyawaad!

सुज्ञ said...

कहां कहां पिरोए है आस के मुक्ता, अलंकार का अभिनव प्रयोग॥ बधाई।

हरकीरत ' हीर' said...

इन सब के बावजूद भी तुम मेरे ख्यालों को
और गुमराह करने से बाज नहीं आते हो;
अपनी इक ड्रैकुला-वाली हँसी सुनवा के
इक घुँघरू अपने मौजूद होने का भ्रम का,
मेरी चुन्नी में टाँक जाते हो.

वंदना जी नए प्रयोग अच्छे लगे ....
कुछ अलग सा likha hmeshaa prbhavit करता है .....

Rohit Singh said...

क्या कहूं। अहसास के इतने रंग, इंतजार के इतने पल। हां अक्सर रह ही जाते हैं। आंखे बंद हो तो उन अंधेरों में को ई मुस्कुरा कर उजाला कर देता है तो कोई अंधेरे में ही मुस्कुराता रहता है। बादम के छिलके समेत जाने कितने चीजें रह जाती है किसी ओऱ के पास।

खैर.....बादाम के छिलके पर पेंटिंग की बात आपने याद दिला दी। धन्यवाद। आगे कुछ इन छिलकों पर पोतने की कोशिश करेंगे, भले ही पोताई का काम काफी समय से किया न हो। पर क्या है दोबारा शुरु कर देंगे।

amar jeet said...

इस बार मेरे ब्लॉग में '''''''''महंगी होती शादिया .............

Anonymous said...

bohot bohot hi khoobsurat ehsaas bune hain aapne, toooooo good....vo oon ka dhaaga, vo overall, vo grease ki khushboo........kuch cheezein bhulaaye nahin bhoolti na.....

bohot hi kamaal ki rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी इस रचना का लिंक मंगलवार 30 -11-2010
को दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

सदा जी, राहुल, दिगंबर जी,प्रियंका जी,मंजुला जी, गोदियाल जी, अरविन्द जी, वंदना जी, वर्मा जी,शाहनवाज जी, गुडिया जी, सुज्ञ जी, हरकीरत जी, राहुल जी, सांझ जी आप सबो का बहुत बहुत धन्यवाद पोस्ट को पसंद करने के लिए. आशा है इसी तरह से उत्साहवर्धन करते रहिएगा. और त्रुटियों पर भी ध्यान दिलाते रहिएगा. धन्यवाद!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ मंजुला जी,आपके ब्लॉग पर आने के निमंत्रण के लिए बहुत आभार आपका. आपको फोलो कर लिया है. अबसे आना जाना तो लगा ही रहेगा.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ बोले तो बिंदास, रोहित जी जरूर से समय निकाल के पेंटिंग कीजियेगा.यह वाकई बेहद खूबसूरत बनती है.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

अमरजीत जी पोस्ट पढवाने के लिए शुक्रिया! वैसे हम समय -समय पर आपके यहाँ एक चक्कर तो जरूर लगा लेते अहि ताकि कुछ अच्छी चीजें छूटने न पाये.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

संगीता जी, यह दूसरी बार है जब आपने मुझे चर्चा मंच के लिए आमंत्रित किया है. बेहद खुशी की बात है मेरे लिए. आभार आपका.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मन के भावों की बेहतरीन प्रस्तुति वंदना...... सुंदर शब्द चयन....

रश्मि प्रभा... said...

इन सब के बावजूद भी तुम मेरे ख्यालों को
और गुमराह करने से बाज नहीं आते हो;
अपनी इक ड्रैकुला-वाली हँसी सुनवा के
इक घुँघरू अपने मौजूद होने के भ्रम का,
मेरी चुन्नी में टाँक जाते हो.
...
ek sajiv drishya sa laga , bahut hi achha likhti hain aap ...
apni kuch rachnayen vatvriksh ke liye bhejen rasprabha@gmail.com per parichay aur tasweer ke saath

#vpsinghrajput said...

नमस्कार जी! बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

The Serious Comedy Show. said...

sundar,manmohak.shabd bhee tasveer bhee.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

मोनिका जी, रश्मि जी, विजय जी व unkavi जी, आप सबों का धन्यवाद. समय मिले तो आते रहिएगा.

@रश्मि जी, वटवृक्ष में निमंत्रित करने के लिए आपका बहुत आभार!

अनुपमा पाठक said...

सुन्दर भावों का समन्व्यय!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...बहुत सुन्दर रचना........

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

अनुपमा जी, सुमन जी ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद!