आज कुछ ऐसा लिखने को मन हो रहा है, जिसे मैं किसी और को खुश होते देख महसूस कर रही थी. यूँ तो उम्र में वह मुझसे काफी छोटा है, मगर उसके साथ मेरी बहुत निभती है. मुझे पता है अभी अगर वो यह पढ़ेगा तो मुझसे इस बात के लिए जरूर लड़ेगा कि उम्र का अंतर बताना जरूरी था क्या? और मैं हँस दूँगी, कहूँगी कि छोटा है तो छोटा जैसे रह. इस बात पर वह और तिलमिलाएगा, शायद कुछ देर के लिए ही सही, एक बार फिर कुर कुर हो जायेगी. ये कुर कुर शब्द भी उसी ने इजाद किया है, मगर फिर भी हर कुर कुर की एकमात्र कारण उसे मैं ही लगती हूँ. आज उसका प्लेसमेंट हुआ है, और इस बात पर मैं उसे कौन सी मिठाई खिलाऊँ, यही नहीं समझ आ रहा है. कारण बस यही कि वह मुझे मिठाई खाने से रोकता है, मेरे गुड़ वाले रसगुल्ले पर नज़र गडा के रखे रहता है. मेरे मन में तब उसके लिए सबसे ज्यादा गालियाँ निकलती है क्यूंकि I love गुड़ का रसगुल्ला. तब मैं अपने मोटापे को लेके चिंतित होना छोड़ देती हूँ और एक झूठा मगर प्यारा-सा वादा खुद से कर लेती हूँ कि कल से दौडना शुरू कर दूँगी. मेरे इस दौड़ने के प्रण पर मेरी एक सहेली ने भी कह डाला है कि अगर मैं लगातार सात दिनों तक दौड़ने के लिए सुबह उठना शुरू कर दूँ तो बदले में वो मुझे अपनी तरफ से बाहर खिलाने ले जायेगी, हालाँकि इस बात को हुए ३ साल होने को आये है और मुझे अब तक वो लजीज खाना नसीब नहीं हुआ है. हाँ तो यह पोस्ट लिखने से पहले मैंने यही सोचा कि उसे ये पोस्ट लिख के दे दूँ, मेरी तरफ से बधाई के लिए. मेरे पास सिर्फ शब्दों के कुछ मोती बोलो या पत्थर-कंकड़ ही पड़े है, जो उसे भेंट स्वरुप दे सकती हूँ. पिछले कई दिनों से वह काफी परेशान था. एक के बाद एक कंपनी में छंटने के बाद उसमें गुस्सा भर रहा था जैसे कि उसके साथ ही ऐसा क्यूँ हो रहा है? इस दौरान उसने काफी कुछ सीखा होगा, यह मुझसे ज्यादा भला कौन जान सकता है. और मैं भी यही चाहती थी कि कुछ सबक मिलने के बाद ही उसे कुछ मिले, तब शायद वह उस मोती की कीमत को भली भांति समझ सकेगा और उसे अच्छे से संभाले रखेगा.
तुम आज सोच रहे होगे न कि मैं क्या लिखने वाली हूँ इस पोस्ट में. ज्यादा कुछ नहीं, बस बीते पलों में से कुछ को फिर से सजाने की कोशिश ही कर रही हूँ.
याद है जब तुम पहली बार ट्रेक में जाने से पहले मिले थे तो तुमने बस में सबका फोटो लिया था और हम दोनों, नीतू और मुझे, उस फ्रेम से निकाल दिए थे. मुझे बुरा लगा था, और उस समय तुम्हें नहीं जानते हुए भी मैं धीरे से बुदबुदाई थी कि रुक अभी पूरा ट्रेक बाकी है. अभी तुम हँस रहे होगे कि बाप रे ये लड़की कितनी बड़ी होकर भी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगाये रहती है. तो मैं तुम्हें बता दूँ कि मैं इंसान हूँ और इंसान जैसी ही सोचती हूँ. उसके बाद जब ये पता चला कि तुम्हें ही कहा गया है हम दोनों का ख्याल रखने को तो मन ने एक बार कहा कि हम खुद से रख लेगे इससे अच्छा.
फिर जब स्टेशन के बाहर खड़े थे और नीतू को वाश-रूम जाना था, और तुम्हें मैं बोलने गई थी कि हमारा इंतज़ार करना तो तुम्हारा दो टका-सा जवाब कि अभी ही जाना था, उस बात पर तुम्हें उस समय बहुत सुनाने का मन किया था. मगर फिर सोचे कि इनकी बुद्धि इससे ज्यादा बढ़ नहीं सकती और मैं बिना कहे वापस चली आई.
स्टेशन में ट्रेन का इंतज़ार करते वक्त ही तुम थोड़े ढंग के लगे जब तुमने कहा कि हमलोग बात क्यूँ नहीं कर रहे है. कुछ ऐसा ही कहा था तुमने.
फिर पता नहीं कैसे तुम मुझसे बातें करने लगे थे, शायद उस टी.टी. के कारण, वरना हम कभी इतना बात ही नहीं कर पाते. ट्रेन में जब मैं दूसरे बोगी में बैठे बाकियों से बातें कर रही थी तब तुम आकर मुझे बोले थे कि अपने बर्थ में चलो वहाँ नीतू अकेली बैठी है और उस समय मुझे पता लगा कि तुम मेरी गैरमौजूदगी को मिस कर रहे थे. इस बात पर मैं मन-ही-मन हँस दी थी कि जनाब सीधे भी रहते है कभी-कभी. फिर सब जब अपने अपने बर्थ में सो रहे थे, तब तुम और मैं ऊपर वाली आमने-सामने बर्थ पर कुछ भी बातें किये जा रहे थे. तुम अपनी बचपन की बातें भी बताने लगे थे और मैं सुन सुन कर सोच रही थी कि यह मुझे कैसे बताने को राज़ी हो गया. हा हा हा.
बागेश्वर में याद है जब छत में धूप सेंकने गए थे हम, तो तुम अपनी कुछ बातें बोल गए थे और मैं चुपचाप से नीचे आ गयी कि इसे मैं ही मिली थी सुनाने के लिए. बहुत ठंडी थी और मैं नहा के निकली थी जब तुमने ये फोटो लिया था.
उसके बाद तो हम तीनों ने बड़े मजे से गुजारे. वो ट्रेक की पहली रात जब हम खाती पहुँच कर टेंट लगा के सोये थे. तुम्हें याद है हम पीछे रह गए थे और एक बच्चे ने हमे गलत रास्ता बता दिया था और हम गांव से होते हुए फिर अपने साथियों से मिले थे. तब चौहान जी बच्चों से बतियाते हुए मिले थे. उस समय मैंने ये फोटो क्लिक कर लिया था.
तुमको पानी पीना होता था तो या तो मेरे हाथ से या नीतू के हाथ से पीते थे. तुम्हारी तो रईसी थी उस समय. और वो झरने का पानी कितना मीठा होता था न! हम एक दूसरे से इतना घुल मिल गए थे कि कभी भी कोई अलग काम नहीं किये न. और वो प्रवीण, तुम, मैं और नीतू का ४ बजे उठ कर उस घर वाले का पीने वाला लोटा लेके भाग जाना, आज भी याद आता है तो हँसी आ जाती है.
सफर में जब जाने के वक्त तुम सब नदी में नहाने के लिए कूद पड़े थे और हम बस बाहर से तुमलोगों को मजे करते देख रहे थे तो मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था कि हमने अपने सब कपड़े आगे क्यूँ भिजवा दिए. और वापसी में हमने अपनी जिद पूरी भी की थी नहाने की. और तुम बहुत गुस्सा कर रहे थे, क्यूंकि तुम अकेले ही पहरेदारी में लगे थे. उस समय मेरा फोटो भी तुमने बहुत गंदे से लिया था देखो तो, बीच में घास-पत्ती भी डाल दिए.
और यह याद है न जब हम पिंडारी के चोटी पर थे. उस वक्त सच में बहुत अच्छा लग रहा था. हमने अपने ग्रुप (ग्रुप ई) को E-people नाम दिया बोले तो equal people.
ट्रेक के बाद फिर तुम्हारे घर भी चले जाना, और तुम्हारे घर में तो सबको अजीब भी लगा होगा कि मनीष की दो दोस्त वो भी लड़की घर आ रही है. वो दो दिन तुम्हारे घर में बिताए हुए बहुत ही अच्छे पल थे. ताजमहल के सामने तांगेवाले को हटाकर खुद को बैठाना और फोटो लेना कितना अच्छा लग रहा था सब. और वो ताज को देखने के बाद मेरा कहना कि ताज जैसा वाला फीलिंग नहीं आ रहा है.
चलो ये अब बातें तुमसे और नहीं करुँगी नहीं तो तुम बोर हो जाओगे और मैं भी बताते-बताते. कुछ और बताते है तुम्हारे बारे में. जैसे कि तुम्हें गाल में थपकी भी देना तुम्हारे इगो को चांटा लगाने जैसा होता है ये मैंने तब जाना जब तुमने मेरा हाथ इतना जोर से मरोड़ा था कि मैं रो पड़ी थी. तुमको मुझपे गुस्सा आता है कि मैं तुमसे शिकायत क्यूँ नहीं करती, हक क्यूँ नहीं जमाती और अपने समझदारी का सारा टोकरा तुम्हारे सिर पर ही क्यूँ डालती हूँ वगैरह-वगैरह. मैं कैसे बताऊँ कि मैं ऐसी ही हूँ. तुम्हारे साथ मेरी लड़ाई ही ज्यादा होती है, और फिर तुम २-४ दिन तक कोप-भवन में बैठे रहोगे. फिर जब उस कोप भवन से आप निकलोगे तो तुम फिर से सोचने लग जाओगे कि ऐसा क्यूँ होने लगा है? पहले तो ऐसा नहीं था. अब मेरे पास इस बात का कोई जवाब नहीं है. मुझे पता है तुम्हें मुझ पर इतना गुस्सा आता है कि तुम्हारा मन करता होगा कि इस लड़की का गला दबा दूँ? हैं न!
और हाँ! उस दिन तुम जो फोन पर मेरी बातें सुन कर मुझे इतना सुनाये थे ना, उस बात का बदला मैं हर दिन गिन-गिन के और धीरे-धीरे लूँगी तुमसे. समझे न! दूसरी बार बोला तो मैं तुम्हारे सारे बाल नोच लूँगी.
तुम्हारे साथ मेन बिल्डिंग में लैपटॉप में मूवी देखना बहुत अच्छा लगता है. और कभी-कभी तुम मुझे सुलाने के लिए स्क्रीन के उस पार से हाथ से थपथपाते हो तो सच्ची बोलूं तो नींद आ जाती है.
मगर मुझे तुम्हारा फोन काटना बिलकुल भी बर्दाशत नहीं होता. तुम गुस्से में बिलकुल गंदे लगते हो, जिसे मन करता है कि दो-चार लगा दूँ तो ही शायद अकल आये.
और जब तुम धीरे-धीरे खाना खाते हो तो भी बहुत चिढ़ आती है क्यूंकि तुम्हारे स्पीड से खाना खाऊंगी तो मेरी भूख भी खतम हो जाती है. और मुझे स्पून फीडिंग बिलकुल भी पसंद नहीं जो तुम अक्सर चाहते हो. मन करता है कि पूरा चम्मच भी खिला दूँ. समझे?
हाँ मगर तुम चाय मुझसे जल्दी पी जाया करते हो और मेरे गिलास से भी ले लेते हो. अब तो मुझे आदत हो गयी है कि जब भी तुम्हारा गिलास खतम हो तो अपने में से थोड़ा भर देना.
मगर मुझे हँसी भी आती है जब तुम्हें हाथों से चावल खाना बिलकुल भी नहीं आता. तब मन करता है कि तुम्हें चिढ़ाऊं कि आई.आई.टी. के स्टूडेंट को इतना भी नहीं आता.
तुम जब १० मिनट की देरी पर चिल्लाते हो तो मुझे भी चिल्लाने का मन करता है कि भाड़ में जाओ किसने बोला है वेट करने को.
और अब तो मुझे भी पता चल गया है कि तुम मुझसे भी झूठ बोला करते हो. पहले मुझे कैसे सुनाया करते थे कि तुम्हारी तरह नहीं हूँ. आ गया ऊंट पहाड़ के नीचे! हे हे.
और हाँ जब तुम दूसरों से चिढ़ के कुछ उल्टा-पुल्टा बोलते हो और उसके बाद मेरे से जो सुनते हो और उसके बाद तुम्हारा मूड ऑफ इस बात पे हो जाता है कि तुम मेरे मजाक को भी कितना गन्दा बना देती हो और मुझे ही नीचा दिखाती हो. तब मैं कितनी बार तुम्हें समझाती हूँ कि मेरे कहने का ऐसा मतलब हरगिज़ नहीं था. मगर तुम तो अपने सिवा कभी सुने भी हो. तब लगता है कि किसी दीवार में जाके अपना सिर फोड़ लूँ.
तुम्हारा वो एक ही डांस स्टेप मुझे अच्छा लगता है, भले ही तुम उसी को बार-बार क्यूँ न करो. लेकिन जब तुम रोड में चिल्लाते हो हो तो मुझे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता. तब लगता है किस सिरफिरे से पंगा ले लिया. तुम्हारा कभी-कभी किसी बात को लेके जिद करना, उफ्फ्फ कभी-कभी लगता है मेरे जैसा ढीठ प्राणी भी इसके आगे हार जाता है क्या?
चलो बहुत हो गया लिखना, बस इतना कहूँगी कि मैं जानती हूँ तुम अलग राह के हो और मैं दूसरी ही राह की. फिर भी वक्त के इस मोड़ में थोड़ी देर के लिए मिलना भी बहुत अच्छा लगता है. यहाँ से निकलने के बाद तुम कहीं भी जाओगे मुझे जरूर याद करोगे और मैं......हम्म्म्म मेरे पास इतना टाइम नहीं है हे हे. चल हो गया बहुत. गुड नाईट!