इक ख्याल आता है,
फिर इक ख्याल लौट जाता है.
जो रह जाते है मन में,
तेरा ही नाम हर जगह बस लिख जाता है.
एक करवट बदलती हूँ,
जैसे पन्ना कोई पलटती हूँ
जाने कितने पन्ने बाकी है अब भी?
तेरे नाम वाली किताब कौन सिरहाने रख जाता है.
तेरा नाम जैसे सुनती हूँ,
सिलवटों को जब भी मैं छूती हूँ.
तुझसे ही बना हो जैसे हर धागा,
हाथों की लकीरों में तेरी छुअन कोई फूंक जाता है.
इक मद्धिम-सी रोशनी में
आँखें किसी को टटोलती है.
‘कोई नहीं है’ ये जान कर जब फिर सोती है,
कोई हवा में घुल कर मेरी पलकों में छुप जाता है.
कोई सपना नहीं आता है,
अब नींद कोसों दूर रहती है.
मेरे आँखों में ये महफ़िल है किसकी,
जाने कौन तेरे नाम में मेरा नाम अब भी गुनगुनाता है.
हर सुबह की दहलीज पर
आसमां से नीला खत इक आता है.
संग मेरे अब भी जो तुम रहते हो, इस बात पर
मुझे रात भर जगाकर जैसे अतिरिक्त किराया वसूल कर जाता है.
22 comments:
हर सुबह की दहलीज पर
आसमां से नीला खत इक आता है
क्या दृश्य और बिम्ब दिया है आपने. बहुत खूबसूरत
हर सुबह की दहलीज पर
आसमां से नीला खत इक आता है.
संग मेरे अब भी जो तुम रहते हो, इस बात पर
मुझे रात भर जगाकर जैसे अतिरिक्त किराया वसूल कर जाता है.
kuch likhun usse behtar hai do chaar baar aur padh lun, jehan mein utaar lun
"..तेरे नाम वाली किताब.. " ,
"..आंखों में महफिल.." ,
"..तेरे नाम में मेरा नाम अब भी कौन गुनगुनाता है.. "
"...रात भर जगाकर अतिरिक्त किराया.."
कमाल है, यकीं करना मुश्िकल है कि, यह वही लडकी है जिसे मैं जानता हूं, शायद वंदना को जानता तो हूं, पर पहचानता नही हूं। जितना मैंने तुम्हे समझा उस नजरिए से मैं तुम्हे चंचल बहता पानी मानता था, पर इसे पढने के बाद समझ आया, इस बहते पानी में बहुत गहराई है।
तुम्हारे हर शब्द शब्द पे, उसे निकलने वाले भावाभिव्यक्ति पर मैं फिदा ...
अब लगता है तुमसे रोज मिलना पडेगा, भले यह मुलाकात इस आभासीय ईलाके पर ही क्यों ना हो..
बहुत सुंदर ढंग से आपने अपनी बातपाठकों तक पहुंचाई। बधाई।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
रात भर जागने का नया बिम्ब ..अतिरिक्त किराया ...
सुन्दर भाव पूर्ण रचना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
very good... keep on paying extra.
atirikt kiraye ka bojh man ko halka kar gaya .....
sunder shilp . aabhar ji
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
वाह!
जाने कितने पन्ने बाकी है अब भी?
तेरे नाम वाली किताब कौन सिरहाने रख जाता है....
बहुत रूमानी बिंब बना दिया इन पंक्तियों में ... दिल को गहरे तक दास्तक देती हुई गुज़र . ये रचना ....
दिल को छू गई रचना..................
सुन्दर बिम्बों की सुन्दर रचना
सुन्दर बिम्बों की सुन्दर रचना
सुन्दर भाव पूर्ण रचना
हर सुबह की दहलीज पर
आसमां से नीला खत इक आता है.
संग मेरे अब भी जो तुम रहते हो, इस बात पर
मुझे रात भर जगाकर जैसे अतिरिक्त किराया वसूल कर जाता है....
लाज़वाब पंक्तियाँ...कोमल अहसासों से परिपूर्ण सुन्दर भावपूर्ण रचना..
कोई सपना नहीं आता है,अब नींद कोसों दूर रहती है.मेरे आँखों में ये महफ़िल है किसकी,जाने कौन तेरे नाम में मेरा नाम अब भी गुनगुनाता है.
बहुत सुन्दर!
बेहतरीन
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कल 15/06/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है.
आपके सुझावों का हार्दिक स्वागत है .
धन्यवाद!
नयी-पुरानी हलचल
वंदना जी ,
बहुत सारी यादों तो ताज़ा कर गयी ये कोमल भावों से सजी कविता। जो दिल में घर कर जाता है , वो सोते जागते यूँ ही ख्यालों में आता जाता रहता है। नीले आसमान से आते ख़त और अतिरिक्त किराए द्वारा सुन्दर बिम्बों से सजी इस उम्दा रचना के लिए बधाई।
Hi Vandana....
just Visited blog after such a long time............ans saw ur posts....
u really give me complex.. ;):P
i can say just " WOW"
keep writing and keep motivating people like us :)
वाह ...बहुत खूब ।
Bahut khubsurati se shabd diya hai.achchhi lagi
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