Saturday, July 16, 2011

दिल मेरा भर आया था.....

फिर वही सैलाब
जलने आया था शायद,
देर रात फिर एक
सिगरेट सुलगाया था.

बंद दरवाजे में
तुमको मैंने फिर
घुटन की हद तक
गले से लगाया था.

यादों का धुआँ भी
पंखे से लग-लग कर,
बार-बार मुझ तक ही
लौट के आया था.

आँखों में सुबह
हो गई फिर से,
फिर से सूरज
जल के आया था.

मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को,
बादल उसके भी
तन पे छाया था.

खिड़की के कांच पर
हाथ रखे थे कई दिन बाद,
और कई दिन बाद भी
ख़ामोश-सा हर साया था.

इक मैना रोज आती है
मुझे टुकुर-टुकुर देखने,
उसे मेरी टकटकी ने ही
आज फिर से भगाया था.

खिडकी खोल के उन
गिरफ़्त धुआँ यादों को,
शायद फिर से मैंने
बाहर का रास्ता दिखाया था.

दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था.

25 comments:

abhi said...

कभी यकीन नहीं आता की तुम जैसी पागल और बेवकूफ लड़की इतनी खूबसूरत कविता भी लिखती है...:)

Nidhi said...

खिडकी खोल के उन
गिरफ़्त धुआँ यादों को,
शायद फिर से मैंने
बाहर का रास्ता दिखाया था.
बहुत सुन्दर लिखा है...वंदना !!यादों का धुंआ ...सच कहा...बहुत लगता है आँखों में...दिल में...उसे बाहर का रास्ता ही दिखाना चाहिए...पर ऐसा करना आसान होता है क्या?

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ अभि: जब मिलोगे तो यकीन कर लेना.... बंगलौर से खरगपुर भी दूर के ढोल पागल और बेवकूफ लगते है....

@निधि जी: धन्यवाद जो आपको पसंद आया.धुआँ है तो जलन तो होगी ही, बस वक्त ही बाहर करने एम् मदद कर सकता है अब तो.... :-)

@वंदना जी: तेताला में मेरी भी पोस्ट को जगह देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.... और ऐसे ही आते रहिये, अच्छा लगता है.

सदा said...

वाह ...बहुत ही बढि़या ...।

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

नये भाव,नई कल्पनायें,सुंदर रचना.

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था

क्या बात है...

मनोज कुमार said...

नए और अच्छे बिम्बों से सजाया है आपने इस कविता को जिससे भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति हुई है।

प्रेम सरोवर said...

दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था।
यादें ही तो हमारे जीवन की वास्तविक धरोहर हैं। इन्हे अपने अंतर्मन में सहेज कर रखिए। ये यादें हीं तो हैं जो हमे कभी न कभी झकझोर कर चली जाती हैं। आपके पोस्ट पर आना बहुत ही सुखद लगा।
धन्यवाद।

रजनीश तिवारी said...

एकाकी अहसास बेहद खूबसूरती से पिरोया है इस रचना में आपने ...बहुत खूब !

Udan Tashtari said...

बेहतरीन अहसासों की बानगी....



कभी कभी बिना कविता के आलेख भी लिख देना भा जाता है...आगे ध्यान रखेंगे. :)

दिगम्बर नासवा said...

मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को,
बादल उसके भी
तन पे छाया था.

बहित ही लाजवाब ... वंदना जी ख्यालों की उड़ान की सच में कोई सीमा नहीं है ... ये पंक्तियाँ इस बाद को साबित कर रही हैं ..

POOJA... said...

aapki rachna padhne ke baad...
mere aas-paas bhi ek moun-sa chhaaya tha...
shayad mera bhi dil
kuchh yadon se bhar aaya tha...

Amrita Tanmay said...

Behad khubsurati se piroya hai ahsason ko..

Sunil Kumar said...

दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था
यह पंक्तियाँ जबरदस्त है और कुछ नहीं ......

Kailash Sharma said...

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..

महेन्‍द्र वर्मा said...

मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को
बादल उसके भी
तन पे छाया था

बहुत अच्छी कविता।
मन की गहराइयों से उपजी एक कोमल रचना।

Dorothy said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.

Kunwar Kusumesh said...

अच्छी कविता.

कविता रावत said...

खिडकी खोल के उनगिरफ़्त धुआँ यादों को,शायद फिर से मैंनेबाहर का रास्ता दिखाया था.
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदीभी इत्तला कर गई है,कि सूरज ही रोया थाया दिल मेरा भर आया था.

...dil ki kashish ko bakhubi prastuti kiya hai aapne... bahut badiya lagi rachna..
haardik shubhkamnayen...

Unknown said...

Bahut hi badhiya likhti hain, badhai.. Main aapko follow kar raha hun..

जयकृष्ण राय तुषार said...

यकीनन बहुत ही अच्छी कविता बधाई और शुभकामनाएँ |

जयकृष्ण राय तुषार said...

यकीनन बहुत ही अच्छी कविता बधाई और शुभकामनाएँ |

हरकीरत ' हीर' said...

बहुत खूब .....
आकर्षित करते शब्द .....!!

Anonymous said...

दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था.
awsm!