फिर वही सैलाब
जलने आया था शायद,
देर रात फिर एक
सिगरेट सुलगाया था.
बंद दरवाजे में
तुमको मैंने फिर
घुटन की हद तक
गले से लगाया था.
यादों का धुआँ भी
पंखे से लग-लग कर,
बार-बार मुझ तक ही
लौट के आया था.
आँखों में सुबह
हो गई फिर से,
फिर से सूरज
जल के आया था.
मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को,
बादल उसके भी
तन पे छाया था.
खिड़की के कांच पर
हाथ रखे थे कई दिन बाद,
और कई दिन बाद भी
ख़ामोश-सा हर साया था.
इक मैना रोज आती है
मुझे टुकुर-टुकुर देखने,
उसे मेरी टकटकी ने ही
आज फिर से भगाया था.
खिडकी खोल के उन
गिरफ़्त धुआँ यादों को,
शायद फिर से मैंने
बाहर का रास्ता दिखाया था.
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था.
25 comments:
कभी यकीन नहीं आता की तुम जैसी पागल और बेवकूफ लड़की इतनी खूबसूरत कविता भी लिखती है...:)
खिडकी खोल के उन
गिरफ़्त धुआँ यादों को,
शायद फिर से मैंने
बाहर का रास्ता दिखाया था.
बहुत सुन्दर लिखा है...वंदना !!यादों का धुंआ ...सच कहा...बहुत लगता है आँखों में...दिल में...उसे बाहर का रास्ता ही दिखाना चाहिए...पर ऐसा करना आसान होता है क्या?
@ अभि: जब मिलोगे तो यकीन कर लेना.... बंगलौर से खरगपुर भी दूर के ढोल पागल और बेवकूफ लगते है....
@निधि जी: धन्यवाद जो आपको पसंद आया.धुआँ है तो जलन तो होगी ही, बस वक्त ही बाहर करने एम् मदद कर सकता है अब तो.... :-)
@वंदना जी: तेताला में मेरी भी पोस्ट को जगह देने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया.... और ऐसे ही आते रहिये, अच्छा लगता है.
वाह ...बहुत ही बढि़या ...।
नये भाव,नई कल्पनायें,सुंदर रचना.
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था
क्या बात है...
नए और अच्छे बिम्बों से सजाया है आपने इस कविता को जिससे भावों की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति हुई है।
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था।
यादें ही तो हमारे जीवन की वास्तविक धरोहर हैं। इन्हे अपने अंतर्मन में सहेज कर रखिए। ये यादें हीं तो हैं जो हमे कभी न कभी झकझोर कर चली जाती हैं। आपके पोस्ट पर आना बहुत ही सुखद लगा।
धन्यवाद।
एकाकी अहसास बेहद खूबसूरती से पिरोया है इस रचना में आपने ...बहुत खूब !
बेहतरीन अहसासों की बानगी....
कभी कभी बिना कविता के आलेख भी लिख देना भा जाता है...आगे ध्यान रखेंगे. :)
मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को,
बादल उसके भी
तन पे छाया था.
बहित ही लाजवाब ... वंदना जी ख्यालों की उड़ान की सच में कोई सीमा नहीं है ... ये पंक्तियाँ इस बाद को साबित कर रही हैं ..
aapki rachna padhne ke baad...
mere aas-paas bhi ek moun-sa chhaaya tha...
shayad mera bhi dil
kuchh yadon se bhar aaya tha...
Behad khubsurati se piroya hai ahsason ko..
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था
यह पंक्तियाँ जबरदस्त है और कुछ नहीं ......
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना..
मेरी ही चिंगारी
लगी थी सूरज को
बादल उसके भी
तन पे छाया था
बहुत अच्छी कविता।
मन की गहराइयों से उपजी एक कोमल रचना।
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
अच्छी कविता.
खिडकी खोल के उनगिरफ़्त धुआँ यादों को,शायद फिर से मैंनेबाहर का रास्ता दिखाया था.
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदीभी इत्तला कर गई है,कि सूरज ही रोया थाया दिल मेरा भर आया था.
...dil ki kashish ko bakhubi prastuti kiya hai aapne... bahut badiya lagi rachna..
haardik shubhkamnayen...
Bahut hi badhiya likhti hain, badhai.. Main aapko follow kar raha hun..
यकीनन बहुत ही अच्छी कविता बधाई और शुभकामनाएँ |
यकीनन बहुत ही अच्छी कविता बधाई और शुभकामनाएँ |
बहुत खूब .....
आकर्षित करते शब्द .....!!
दूर पक्की जमीन पर बूँदाबाँदी
भी इत्तला कर गई है,
कि सूरज ही रोया था
या दिल मेरा भर आया था.
awsm!
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