Saturday, February 21, 2009
दिल की आवाज़
एक आवाज आई;
धडकनों से मेरे खेलती,
दिल को छू जाती.
खिलखिलाती-सी,
वो हँसती मेरे जज्बातों पे,
वो रोती मेरे अंजामों पे.
मैं जो कहती तो वो फिर-से दुहराती,
मैं जो चुप रहती तो सारे ज़माने की सुना करती.
कभी ताकत तो कभी कमजोरी
कभी दुश्मन तो कभी दोस्ती की नाज़ुक-सी वो एक डोरी.
मुझको मुझ-ही से मिलाती,
कभी मुझको ही चुरा जाती.
एक आवाज़ पूछती है,सोचती है;
हर कदम जो मैंने उठाये,
हर सितम जो मैंने भुलाये,
क्या सही क्या गलत
जानूँ क्या मैं?
अब तो वो ही बताये.
एक आवाज़ कह रही है;
ये गलत तो नहीं है.
झूठी है वो बहुत
ऐन वक़्त पर ही दे जाती है दगा;
फिर भी न मिला मुझे उस-सा सगा.
एक आवाज़ फरियाद करती है-
"मुझे दिल में ही रहने दो,
तेरा दिल है मेरा रैन-बसेरा.
आँखों से न कभी उतरने दो,
लगाना सदा पलकों का घेरा.
कि ज़माने की धार तेज बहुत है
और तेरा दिल बड़ा-ही नाजुक है."
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