
मेरे चाहतों के बादल
तैरते है, सदा मेरी आँखों में.
मैं हूँ प्यासी, उन अधरों की तरह
जिन पर आँसू बनकर ये कभी बरस नहीं पाते....
मैं हूँ तनहा, इन बेशुमार
तारों की चमकीली दुनिया में.
मैं गगन का वो टूटा हुआ तारा हूँ,
जो खुद को भी रोशनी दे नहीं पाते....
है तो तमन्ना मेरी, ऊंची इतनी
कि इस जहाँ से परे, उस जहाँ में.
मैं वो पंछी हूँ, जो पिंजरें में बंद नहीं,
फिर भी कभी ऊंची उडानें भर नहीं पाते....
रेत की तरह फिसल जाती है,
आके ख़ुशी मेरी मुठ्ठी से.
मैं वो सूखा रेगिस्तान हूँ,
जो किसी को भी तो दिशा दे नहीं पाते....
सपने चूर-चूर हो जाते है,
दिन के उजाले में.
मैं तो वो बेनूर ख्वाब हूँ,
जो रातों को भी मन बहला नहीं पाते....
मैं कौन हूँ? एक सवाल बनकर
रह गया है, इस व्योम में.
मैं खुद को कैसे पहचान लूँ,
जब साए भी अपने बन के रह नहीं पाते....
1 comment:
बहुत ही सुन्दरता के साथ आपने अपना शब्द चित्र खेंचा है
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
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