वक्त के आईने पर
जब अपना ही चेहरा देखती हूँ,
तो यह अहसास होता है कि
कितने मोड़ पीछे छोड़ आई हूँ.
उम्र से अधिक वक्र रेखाएं
चेहरे में दिखने लगी है,
शायद बहुत जल्दी-जल्दी
कई मोड़ पार कर आई हूँ.
जिन मोड़ों पर उसका नाम
अब भी लिखा मिलता है,
वहाँ वक्रता कुछ ज्यादा-ही
खिंची हुई दीखती है.
उसकी हँसी अब भी
मेरे दोनों आँखों के बीच
बचे स्थान के थोड़ा ऊपर
चिपकी हुई रहती है.
जिसे मिटाने के लिए
मैं जब भी खुरचती हूँ,
लाल-सा कुछ मुझमें
भी दीखने लगता है.
उसे तो लाल रंग
बहुत पसंद था,
शायद इसीलिए मुझमें
यह रंग नहीं जँचता है.
18 comments:
Prem ki bindi :)
Sundar kavita...kuch alag se bhav liye huye.. :)
वाह जी वाह... फ़िर से प्यार भरी यादों को उकेर दिया शब्दों में...
बहुत खूब...
क्यू खुरेच्ती हैं उस बिंदिया को... रहने दीजिये, आप पर अच्छी लगती है... :)
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कोई जब दूर रहे तो उसकी हर बातें याद आती है...
हर बीता पल साफ़ दीखता है, और बस वही सब पुरानी बातें दिलो दिमाग में चलती रहती हैं.
जिन मोड़ों पर उसका नाम
अब भी लिखा मिलता है,
वहाँ वक्रता कुछ ज्यादा-ही
खिंची हुई दीखती है
यादों के झरोखे से झांकती रचना ..बहुत से एहसासों को समेटे हुए है ..
आपने तो सुन्दर लिखा..बधाई.
'पाखी की दुनिया' में भी आपका स्वागत है.
सुंदर कविता है
wow vandana.... itz too gud.
javab ka javab mil jayega...
@ मोनाली: अच्छा नाम दे दिया तुमने तो- प्रेम की बिंदी!
@ पूजा:चलो तुम्हारा कहा मान के रख लेते है ;-)
@ अभि:तुम्हारे इस कमेंट्स पर मा तो नो कमेंट्स है जी :-)
@ संगीता जी, यादों के झरोखें ऐसे ही होते है, वक्त की हवा बहे न बहे, खुले के खुले ही रहेगे.
@पाखी जी: जी जरूर आयेगे, फोलो तो कर लिए है.और बुलाने के लिए भी बहुत आभार आपका.
@विनय जी: कहाँ थे आप? इतने दिनों-महीनो के बाद देखा आपको? अच्छा लगा आपका आना.
@गणेश जी: चलिए आपको मैं याद रही और आपने इतना समय भी दिया. धन्यवाद!
@आनंद जी: आपकी बात को मानते हुए इंतज़ार करेगे सही जवाब का!
भावपूर्ण कविता | शुभकामनाएँ|
वक्त के आईने पर
जब अपना ही चेहरा देखती हूँ,
तो यह अहसास होता है कि
कितने मोड़ पीछे छोड़ आई हूँ
वाह वाह क्या बात है, वंदना जी
वंदना जी
नमस्कार !
उसे तो लाल रंगबहुत पसंद था,शायद इसीलिए मुझमेंयह रंग नहीं जँचता है.
अच्छी रचना ...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
जिन मोड़ों पर उसका नाम
अब भी लिखा मिलता है,
वहाँ वक्रता कुछ ज्यादा-ही
खिंची हुई दीखती है,
जटिल अनुभूतियों को आपने खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है।
...कविता के शिल्प में नयापन है।
is saundarya ko na khurchen ... ise aur laal , gahra hone den
सुन्दर प्रस्तुति
बहुत - बहुत शुभकामना
कमाल की कविताऎं लिखती हैं आप। छोटी लेकिन गहरी और ताजगी से भरी हुई। आप लिखती रहें और हम पढ़ते रहेंगे।
वाह ... ग़ज़ब .. माथे के बींचो बीच ... चिपकी हँसी ... तातों से खुरचने पर निकल जख्म और लाल रंग ... अब ये रंग मुझे तो पसंद नही .... बहुत ही गहरे ज़ज्बात उडेल दिए हैं ... लाजवाब रचना है ...
पटाली जी, कुसुमेश जी, संजय जी, महेंद्र जी, रश्मि जी, दीप जी, दिगम्बर जी आप सबो का बहुत धन्यवाद
सोमेश जी सराहना के लिए धन्यवाद.
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