कभी-कभी उन सभी कोशिकाओं
को ढूँढने का मन करता है,
जिनमें तुम्हारी यादें बस गई हो.
सिर्फ इतना जानने के लिए
कि तुम और कितने
याद आने बाकी रह गए हो .
रोज रोज सोचती हूँ कि
अब तो बहुत हो चुका, पर नहीं
तुम अब भी नहीं चुके हो.
जाने कैसे याद आते रहते हो,
जाने क्या – क्या तुम
उन कोशिकाओं में रख गए हो?
हर सुबह दुगुने हो जाते हो,
जैसे मुझे “ न भुलने की ”
- कोई मीठी कसम दे गए हो.
कोशिका-द्विभाजन की
यह विशेषता जतला कर
हाँ! तुम सच में अमृत बन गए हो.
27 comments:
वाह!क्या लिखती हैं आप भी :)
बेहतरीन!
याद कोशिकाओ में और फिर उसका विभाजन.. कमाल का थोट है.. मैंने पहले नहीं पढ़ा.. गुड वन
रोज रोज सोचती हूँ कि
अब तो बहुत हो चुका, पर नहीं
तुम अब भी नहीं चुके हो.
बहुत खूब...कोमल भावों से परिपूर्ण एक सुन्दर प्रस्तुति...
कोशिकाएं ढूँढने के लिए डॉक्टर की ज़रुरत होगी.
हर सुबह दुगुने हो जाते हो,
जैसे मुझे “ न भुलने की ”
- कोई मीठी कसम दे गए हो.
aapki kalam jadui hai yaa aap?
Very different... mitosis,meiosis sab yaad aa gaya :D
Aur ske siwa bhi bahut kuchh yaad aa gaya... uski yaadein bhi kahin gahre basi hain,...har kavita se jhaankte dikh jati h :)
anokhee rachnaa.apratim.
हर सुबह दुगुने हो जाते हो,
जैसे मुझे “ न भुलने की ”
- कोई मीठी कसम दे गए हो.
कोशिका-द्विभाजन की
यह विशेषता जतला कर
हाँ! तुम सच में अमृत बन गए हो.
nice lines Vndana.... :)
oh my my.....itni scientific yaadein pehli baar padhi hain...too good dear :) kya socha hai, bas kamaal hai
वाह ...बहुत खूब .....सुन्दर प्रस्तुति ।
अद्भुत ...एक नयापन है इस कविता में ..जो अमूमन ब्लॉग जगत में नहीं मिलता ... कोशिका विभाजन पर लिखी गयी नज़्म पहली बार पढ़ी ... थोड़ी बड़ी होती अगर ..तो यादों के प्रोफेस, मेताफेस से भी गुजार जाते हैं ... हे हे हे ..पर नज़्म बहुत अच्छी है
शब्द जैसे ढ़ल गये हों खुद बखुद, इस तरह कविता रची है आपने।
नए पुराने ब्लोगरो हेतु ब्लोगिंग टिप्स..
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
वियोग में विज्ञान का तड़का। अच्छा प्रयास है।
मेरे विचार से कोशिका की जगह न्युरॉन्स प्रयोग करना चाहिए था क्योंकि हर कोशिका में तो स्मृति भंडारण होता नहीं। बाकी आपकी इच्छा।
दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आ गया आपकी कविता पढ़कर-
सहने को हो गया इकट्ठा इतना सारा दुख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुमको भूल गया
सोमेश
शब्द साधना
nice poem,
lovely blog.
@ यशवन्त: जी सहृदय धन्यवाद आपका.
@ कुश: मेरा शोध कार्य इसी से संबंधित है ना! इसीलिए यह थोट आ गया.
@ कैलाश जी आभार आपका.
@ कुसुमेश जी इसके लिए डॉक्टर होता भी है भला!
@ रश्मि जी: न कलम न मैं, आप पाठकों के स्नेह का जादू है बस.
@ मोनाली: यादें है, शक्लें तो बनाएगी उसकी.
@ unkavi: धन्यवाद आपका.
@ राहुल, सांझ, सदा जी: थैंक्स!!!!!
कोशिका-द्विभाजन की
यह विशेषता जतला कर
हाँ! तुम सच में अमृत बन गए हो।
...अनूठे बिम्बों से सजी अनूठी कविता।
पांच लाख से भी जियादा लोग फायदा उठा चुके हैं
प्यारे मालिक के ये दो नाम हैं जो कोई भी इनको सच्चे दिल से 100 बार पढेगा।
मालिक उसको हर परेशानी से छुटकारा देगा और अपना सच्चा रास्ता
दिखा कर रहेगा। वो दो नाम यह हैं।
या हादी
(ऐ सच्चा रास्ता दिखाने वाले)
या रहीम
(ऐ हर परेशानी में दया करने वाले)
आइये हमारे ब्लॉग पर और पढ़िए एक छोटी सी पुस्तक
{आप की अमानत आपकी सेवा में}
इस पुस्तक को पढ़ कर
पांच लाख से भी जियादा लोग
फायदा उठा चुके हैं ब्लॉग का पता है aapkiamanat.blogspotcom
prem ka jaiv vagynik vishleshan..
naya prayog..
ati sundar...
हर सुबह दुगुने हो जाते हो,
जैसे मुझे “ न भुलने की ”
- कोई मीठी कसम दे गए हो.
sundar!
bahut hi sundar likhti ho tum...
man khush ho gaya padh kar..aise hi likhti raho..dua hai meri..
बहुत ख़ूबसूरत लिखा है आपने... अच्छा लगा इसे गुनना
@ स्वप्निल जी: किसी भी प्रोसेस में क्यूँ न चले जाये हम, यह रहस्य तो हमेशा बने रहेगा और इसके पीछे हम घूमते ही रहेगे. पसंद करने के लिए शुक्रिया आपका.
@संजय जी धन्यवाद और हम जरूर से आयेगे आपके ब्लॉग पर भी.
@सोमेश जी: "सहने को हो गया इकट्ठा इतना सारा दुख मन में
कहने को हो गया कि देखो अब मैं तुमको भूल गया"----- वाह! क्या बात कही है आपने.
वैसे न्यूरोन्स भी एक तरह की कोशिका ही है, जो मेमोरी के संचित करने के लिए जिम्मेदार होती है.
@hot girl: thank u dear!
@ महेंद्र जी, सुरेन्द्र जी व अनुपमा जी आप सबों का बहुत आभार!
@ अदा जी: अदा जी आपका आशीर्वाद मिल गया और क्या चाहिये! बहुत बहुत धन्यवाद!
@अविनाश जी : शुक्रिया आपका! आते रहिएगा
great poem.... each word has its own meaning .. kudos .
an regular aaunga aapke blog par.
dhnaywad.
विजय जी, आपका सहृदय धन्यवाद और स्वागत भी है मेरे ब्लॉग में!
पूरा पोस्ट कमेंट के साथ पढ़ने के बाद जो बात मन में आयी वही पूछ रहा हूँ..
पाँच लाख एकवां व्यक्ति तुम बनी कि नहीं बनी? :-)
@prashant: abhi tak to nahi..... aur isse jyada puchna bhi mat!
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