एक अजीब सी कशमकश है, एक जैसे चेहरों के बीच दूरियां दीखती है, और उन दूरियों में लिखी जाती है दूरियों की परिभाषा; मन चंचल होता तो है, मगर डोलना असहनीय-सा क्यूँ लगने लगता है उस धागे से बंधकर, जिसके अनगिनत मरोड़ों में कई कहानियां जमी, दबी-सी रहती है, और इन कहानियों के सुनने वाला कोई नहीं, वो भी नहीं जो इनके किरदार होते है; फिर एक हवा सरसराने लगती है, कान बंद करने का सवाल ही नहीं उठता, उसे जो कहना होता है, मेरे दिमाग में सोच बना के छोड़ जाती है; फिर सोचने की आदत बन जाती है अपने आप और एक दिन वो सोच को वहाँ रखना बंद कर देती है, जहाँ से मुझे चुनने की आदत लगी थी; आगे देखने को कुछ भी नहीं है, पीछे समय का पहाड़ इतना बड़ा हो चला है कि उससे होकर भी कुछ दीखता नहीं; आँख बंद करने से अंधकार भी दूर भाग जाती है, रोशनी आँखों में चुभती है तो रास्ता तो उजियारा हो जाता है, मगर कदम कहीं और गिरते है, पानी में डूबने के जैसा, और ज़मीन भी मुस्कुरा कर साथ छोड़ देती है; अंदर से एक पुकार आती है, 'मैं हूँ'...... तो मैं कौन हूँ? हाथ फिर किसी नए सोच से टकराते है, इस बार रखनेवाला पहले से ज्यादा अपरिचित-सा मालूम पड़ता है, नहीं सोचने की ताज़ी-ताज़ी आदत फिर टूटने लगती है, कशमकश का दायरा फैलने लगता है, दूरियां पहले से लंबी लगने लगती है, मन अब पहली बार खुद से सवाल पूछता है कि कौन नजदीक लग रहा अब तुम्हे? और कौन जाना हुआ-सा? मुझे मालूम है ये बेताल का प्रश्न है, जवाब देकर भी उसी कशमकश में डूबना है, जिसमे तैरने की मनाही है. अजीब सी कशमकश है......
9 comments:
bilkul sahi... ajeeb si hai kashmakash
'मैं हूँ'...... तो मैं कौन हूँ?अजीब सी कशमकश है......
Very nice think and very nice presentation...
जिस दिन खुद को पा लिया खुदा को पा लिया।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो
चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
मन की कशमकश को दिखाती...भावपूर्ण रचना..
बहुत अच्छी प्रस्तुति है!
रक्षाबन्धन के पावन पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
स्वतन्त्रतादिवस की भी बधाई हो!
सभी पाठकगण का हार्दिक स्वागत है!
@ रूपचन्द्र शास्त्री जी! चर्चा मंच में इस पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. चर्चा मंच का यह प्रयास बेमिसाल है. इसकी मैं सदैव आभारी रहूंगी.
हाँ है तो अजीब सी कशमकश
ये बेताल का प्रश्न है...
waqai..!!
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