Friday, June 29, 2012

अपने मन की बात.....


नीली दीवार पर
आईने का चौकोरपन,
नहीं बाँध पाता
मेरे अंदर का खालीपन।

इस्त्री किए हुए
सभी कपड़ों के बीच,
मैं छुपा नहीं पाती
अपने मन का सच।

ये घड़ी की सुईयां
इतनी भी नहीं नश्तर,
कि फेंक सकूँ मैं
जो भी बचा मेरे अंदर।

एक टंगा लाल झोला या
गुच्छे चाबियों का सारा,
नहीं है तो बस वो कील जिसे
समझ सकूँ मन का सहारा।

कैलेंडर में दीखता तो है
मौसम का बदलना,
फिर क्यूँ रुका हुआ है,
यादों का यहाँ से जाना।

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

16 comments:

संजय भास्‍कर said...

वन्दना जी बहुत अच्छी कविता है
बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।
बहुत ही सही ... उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार ।

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 01/07/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Rahul Ranjan Rai said...

कैलेंडर में दीखता तो है
मौसम का बदलना,
फिर क्यूँ रुका हुआ है,
यादों का यहाँ से जाना।

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।
:)
again touching! keep writing!

M VERMA said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

गज़ब का मानवीकरण किया है. अद्भुत

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
--
इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (01-07-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

vandana gupta said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

्दिल को छू गयी

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत प्यारी रचना......

दिल को छूते निकल गयी.

अनु

प्रवीण पाण्डेय said...

चादरों की सिलवटों में मन की इबारत लिखी है..

Onkar said...

अंतिम पंक्तियों में आपने सब कुछ कह दिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

बहुत खूब ... सुंदर रचना

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

अंतर्मन की व्यथा को एक कमरे में देख कर अंतिम पंक्तियों में मन को छू लिया.

रचना दीक्षित said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात।

सिलवटों में इबारत प्यार की सुंदर है.
वंदना बहुत अच्छी कविता लिखी है.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बिस्तर में तकिया
ही सोता है पूरी रात,
मैं चादर की सिलवटों में
लिखती अपने मन की बात...

सुन्दर... वाह!
सादर.

shikha varshney said...

आखिरी चार पंक्तियाँ कातिलाना हैं.

yashoda Agrawal said...

अति सुन्दर रचना

Nidhi said...

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर...सुन्दर कविता .भावों से भरी