तेरे नैना
जब भी देखूँ
सोचूँ मैं ये
कि कैसे कहूँ?
सदा के लिए
इन नैनों में ही
मैं छुप के रहूँ.
तेरे नैना
कुछ न कहे
चुप-से ही रहे,
फिर भी देखे
जब भी मुझे
जैसे कहे
अपना ले मुझे.
तेरे नैना
जैसे कोई
भीतर रिसता गहरे
समंदर का पानी,
मन में बहे
जाने कितने
जनमों की कहानी.
तेरे नैना
बड़े ही शरारती
चंचल होकर
करे जब इशारे,
पलकें मेरी
झुकती ही जाये
हाँ! शर्म के मारे.
तेरे नैना
बहुत सताती
रात-रात भर
मुझको जगाती,
आके सपनों में
कहती मुझसे वो
जो कभी कह न पाती.
तेरे नैना.... हाँ .. तेरे नैना....
2 comments:
तीव्र गहरी अनुभूति की कविता
बेहतरीन भाव
बहुत उम्दा रचना है
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आनंद बक्षी
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