Sunday, September 26, 2010

खुद से किया एक वादा



खुद से किया एक वादा
रोज तोड़ जाती हूँ,
फिर भी कुछ न कहती हूँ.

भूल जाती हूँ तब
खुद पर भी गुस्सा करना,
क्यूँ उसको फिर कोसती हूँ.

जो एक वादा उसने
न निभाया, तो क्या हुआ?
खुद से कितने तोडती हूँ.

अपने ही बनाये इस 
दोयम दर्जे से हूँ शर्मिंदा भी,
फिर भी उसपे गुस्सा करती हूँ. 

13 comments:

Udan Tashtari said...

भाव अच्छे लगे.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

समीरजी भावना को समझने के लिए शुक्रिया.

M VERMA said...

बहुत खूबसूरत भाव .. एहसास जब इस तरह के हों तो क्या कहने

संजय भास्‍कर said...

हमेशा की तरह उम्दा रचना..बधाई.

संजय भास्‍कर said...

bahut khoob Vandana ji...........main to fan ho gaya apka

संजय भास्‍कर said...

bahut khoob Vandana ji...........main to fan ho gaya apka

निर्मला कपिला said...

शायद उसे याद न करने का वादा रहा होगा। भावमय रचना। शुभकामनायें।

महेन्‍द्र वर्मा said...

अनुभूतियों को सार्थक शब्दों में पिरोती सुंदर कविता।

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

वर्माजी, संजयजी, निर्मलाजी व महेद्रजी ब्लॉग में आने और सराहने के लिए आभार!

विनोद कुमार पांडेय said...

सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति....शुभकामनाएँ

Razi Shahab said...

अच्छे भाव

Arvind Mishra said...

भावपूर्ण !

Ashish (Ashu) said...

वाह !कितनी अच्छी रचना लिखी है आपने..! बहुत ही पसंद आई