तस्वीर तुम्हारी आज भी
मन में उकेरती हूँ.
आड़ी-तिरछी नज़रों से तेरी
तेरी ही छवि बनाती हूँ.
थोड़ा प्यार का रंग
पहले उसमें उड़ेलती हूँ.
फिर थोड़े-से नाराजगी से
भी तुमको रँगती हूँ.
चंद खिलखिलाहट भी
तुम्हारी भर देती हूँ.
कुछ चुप्पी तुम्हारी
साँसों में घोल लेती हूँ.
फिर लौ तुम्हारी आँखों की
मन के दीये में सुलगा लेती हूँ.
कुछ सपने अनकहे तुम्हारे
लोरी की भांति सुना देती हूँ.
कुछ क्षण तन्हाई तुम्हारी
तन में लपेट लेती हूँ.
कुछ बूँद तेरी यादों की
तकिये में छुपा लेती हूँ.
हाँ! तस्वीर पूरी करने की
भरसक यत्न करती हूँ.
फिर भी तेरी इक झलक को
पल-पल तरसती हूँ.
7 comments:
कुछ क्षण तन्हाई तुम्हारी
तन में लपेट लेती हूँ.
कुछ बूँद तेरी यादों की
तकिये में छुपा लेती हूँ.
बहुत सुंदर
dhanyawad vipinji!
कुछ बूँद तेरी यादों की
तकिये में छुपा लेती हूँ.
संवेदनाए गहरी है. भाव संयोजन सार्थक है और अभिव्यक्ति का स्तर खूबसूरत है.
बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई.
सुन्दर अति सुन्दर
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'चर्चा' पर पढ़िए: पाणिनि – व्याकरण के सर्वश्रेष्ठ रचनाकार
kuchh dard hai yar.. very good !
verma ji , vinayji aur ajay ....... aap sabon ka shukirya blog me aane ke liye....
बहुत अच्छी कविता के लिये बधाई.
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