Friday, September 24, 2010

जीतूँ कैसे?


करूँ लाख जतन मैं जीतने की,
फिर भी इससे मैं जीत नहीं पाती;
खुद से लड़ती हूँ जब तो जीतूँ कैसे?
मैं खुद को हारने भी तो नहीं देती.

17 comments:

M VERMA said...

कौन हारने को प्रस्तुत होगा खुद को

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

;-)

एक बेहद साधारण पाठक said...

बेहतरीन , अपनी ही कशमकश का सजीव चित्रण
समाधान :
मन की रणभूमि में
चलता रहता है
विचारों का युद्द
जो करता है अक्सर
मस्तिष्क को अवरुद्ध
अपने मैं को त्याग दो
जीवन को नया साज दो
इश्वर को आवाज दो
मिलेगी जीत प्रयास करो

Rohit Singh said...

चार लाइनों में काफी बड़ी बात कही है। अपने से जंग में जीतना या हारना हमारा ही हारना और जीतना है। पर आजकल अपने से कौन जूझता है। अगर अपने से जूझने की लत रहे तो दुनिया में काफी कुछ ठीक हो जाए।

संजय भास्‍कर said...

चंद शब्दों में गहरी बात कहना कोई आपसे सीखे...बहुत अच्छी रचना...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

!
Ashish

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

अच्छी पशोपेश रख दी.. :)

मुकेश कुमार सिन्हा said...

incredible........:)
superb, beautiful blog!!


aapko jeet ki subhkamnayen..:)
follow kar raha hoon, ab barabar dekhne pahuchunga..!!

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@गौरव जी, अचूक रामबाण के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. मगर एक साधारण-सी, दुनिया के मोह माया में पूरी तरह से डूबी इस पगली लड़की के लिए ये समाधान कुछ ज्यादा कठिन नहीं हो गया क्या? ;-) वैसे फिर से एक बार आपका ये वाला अल्प-ज्ञान हमें बहुत पसंद आया.

@ बिंदास बोले तो रोहित जी, आपकी बात से मैं पूरी तरह से सहमत हूँ. आजकल कौन जूझता है? सही सवाल है. आपसे पुछुं तो आप क्या कहेगे? वैसे आप तो जूझनेवाले लग ही रहे है . और आपसे सीख कर हम भी जूझने की कोशिश कर ही रहे है. बाकि दुनिया क्या कर रही है? ये सोच के घबराने से क्या होगा. बल्कि ये सोचिये कि आपको , हमको और हम जैसे लोगो को देखकर दुनिया भी बदलने लगेगी.और दुनिया इतनी भी बुरी नहीं है न जहाँ रहने को मन भी न करे. एक छोटी कोशिश आप कीजिये और एक छोटी सी कोशिश मैं, देखना फिर एक दिन बड़ी कोशिश साकार हो ही जायेगी.

@ भास्करजी , आपका भी हमेशा कि तरह से धन्यवाद हौसला बढाने के लिए.

@ आशीष जी, मेरी तरफ से दो exclamation mark !! आपके लिए भी ब्लॉग में पधारने के लिए.

@ पंकज जी, अच्छी पशोपेश तो रख दी है आपके सामने. मगर इस पशोपेश के साथ कहीं जाते हुए कहीं और मत चले जाईयेगा. चाय की चुस्की इस पशोपेश के साथ सेहत के अच्छी मानी जाती है. फिर भूल गए न! चाय खौल रही है.

@ मुकेशजी शुभकामनाओं के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. ब्लॉग में आते रहे. हमे भी इंतज़ार रहेगा.

एक बेहद साधारण पाठक said...

@ ....ये समाधान कुछ ज्यादा कठिन नहीं हो गया क्या?

अच्छा ये बात है थोड़ी लाईट डोज देते हैं

अभयं सत्व संशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति:। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम॥गीता १६.१॥

ये गुण है सारे साथ हों तो काम करते हैं , अकेले एक दो नहीं .... सारे के सारे
अनुवाद चाहिए तो बता दीजियेगा :)

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

अच्छा जी हमें सिर्फ इतने ही गुण गिनाये. और बाकी अपने पास रख लिए. ये सब गुणों के बारे में कौन बताएगा.
अहिंसा सत्यक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम्
दया भूतेष्वलोलुम्प्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्
तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता.

और बताईये आधे गुणों के साथ तो हम अधर में ही लटक जायेगे.न मोह माया के संग रह पायेगे और न ही आपके अनुसार वाली समाधान को पायेगे. वैसे इनका अनुवाद ही इतना कठिन है समाधान कैसा होगा? आप एक काम करो पहले आप इस समाधान को अपना के बताओ की ये काम करता भी है की नहीं?

एक बेहद साधारण पाठक said...

दुनिया का सबसे आसन सवाल .. उत्तर देता हूँ ..... पहले ये बताएं

@पहले आप इस समाधान को अपना के बताओ की ये काम करता भी है की नहीं

ये किस समाधान की बात हो रही है?? मेरा पहला वाला, मेरा दूसरा वाला या जो आपने अभी बताया ??

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

आपको जो सबसे आसान लगे..... वैसे आप तो महा ज्ञानी है. तीनों का उत्तर मिल जाये तो मन को तसल्ली मिल जायेगी.

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ गौरव जी: वैसे तो ये बात मेरी जगह कोई और रहता तो आपको कभी भी नहीं कहता. एक तो गीता मैंने कभी पढ़ी नहीं. हाँ पोस्टर में जो एक-दो प्रचलित सार मार्केट में दीखते थे, बस उन्हें ही जानती थी. आपके गीता के द्वारा इस समाधान को मैंने गूगल में किस तरह से सर्च किया? तदुपरांत अनुवाद कर स्वयं को समझाया. फिर आपसे पुन: प्रश्न करने लायक अपने आपको बनाया. यह सिर्फ मैं ही जानती हूँ :-( पर आप तो एक के बाद एक प्रश्न करते ही जा रहे है. कठिनतर से कठिनतम होते जा रहे है आपके सवालों के बौछार. आशा करती हूँ इसे पढ़ने के बाद आप हंस नहीं रहे होगे.

एक बेहद साधारण पाठक said...

अगर मन को तसल्ली मिल जाती है तो भी समस्या खड़ी हो जाती है ज्ञान की जिज्ञासा बनी रहनी चाहिए

मुस्कुराने से तो कोई नहीं रोक सकता :))

उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः ।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत् ॥

उद्योग, साहस, धैर्य, बुद्धि, शक्ति और पराक्रम जिसके पास ये छः गुण होते हैं उसकी इश्वर भी मदद करते हैं

जैसे "इश्वर उन्ही की मदद करते है जो अपनी मदद स्वयं करते हैं" जैसे ही लगता है ना ??

क्योंकि जिसके पास ये गुण होंगे वो तो अपनी मदद करेगा ही

ये पहले स्तर का ज्ञान है [बचपन में दिया जाता है ]...मुझे नहीं लगता गीता सार जितना असर कारक है उतना असर छोड़ता है [प्राथमिक स्तर पर]

एक लाइन है "एक साधे सब साधे ... सब साधे सब जाए" ये लाइन ये भी कहती है की ज्ञान [लक्ष्य ] एक के बाद एक प्राप्त करो लेकिन ये लाइन कभी ये नहीं कहती की ज्ञान की एटोमिक यूनिट का विभाजन होना चाहिए

बाकी कभी एक पोस्ट बनानी पड़ेगी तभी मैं समझा पाउँगा मैं क्या कहना चाहता हूँ

अभी तो चेप्टर वन है ये ...... सब भूल कर इस पर कंसंट्रेट करें

उद्यमः साहसं धैर्यं बुद्धिः शक्तिः पराक्रमः ।
षडेते यत्र वर्तन्ते तत्र दैवं सहायकृत् ॥

ये सभी गुण एक साथ

बाकी के गुण "derived " टाइप के हैं ये "primary " हैं

नोट : ये मेरी अपनी ही व्याख्या या स्टेप बाय स्टेप लर्निंग जैसा कुछ है जरूरी नहीं कोई और इस पर सहमत हो ही

एक बेहद साधारण पाठक said...

also read this post

[अगर पहले ना पढ़ी हो ]

http://my2010ideas.blogspot.com/2010/09/blog-post.html

एक बेहद साधारण पाठक said...

और हाँ नयी पोस्ट आपके विचारों का इन्तजार कर रही है
http://my2010ideas.blogspot.com/2010/09/blog-post_26.html
पढ़ कर जो भी मन में उठे .. जो भी
स्वतंत्र मन से लिखें [टिपण्णी करना जरूरी नहीं , अगर ना चाहें तो ]
अगर विचारों
से असहमत हों तब तो बताना ही चाहिए