आँखों से कोसों दूर
मेरे हिस्से की नींद
अब कहीं और सोने लगी है.
लगता है अब मेरी सोच
नुकीली भी नहीं
ज़हर बुझी नश्तर हो चली है.
इस नुकीली बिस्तर पे
सोते-सोते अब
उसकी भी नींद उड़ने लगी है.
पहले तो मेरी मिन्नतें
मान भी लेती थी,
अब वो मिन्नतें करने लगी है.
इसलिए आँखों से कोसों दूर
मेरे हिस्से की नींद
अब कहीं और सोने लगी है.
2 comments:
बेहतरीन भाव .. सारी पंक्तिया बेहतरीन हैं
अत्यंत सुन्दर रचना ,,एक खूबसूरत अंत के साथ ....शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से हम भी आपके साथ है ......शायद सफ़र कुछ आसान हो ,,,!!!! इस रचना के लिए बधाई आपको
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