दूर झरोखे से बाहर
मेरे हॉस्टल का एक छत है,
जिसमें मैं अक्सर रात-बे-रात
गोल-गोल घुमा करती हूँ.
उसके पीछे पेड़ों के झुंड से
अक्सर मुझे किसी के
होने का अहसास मिलता है.
मैं जानती हूँ कि ये
मेरा सिर्फ भ्रम भर ही है.
मगर इस भ्रम में ही मुझे
यह अहसास भी मिलता है
कि मैं उस परछाई से
कम अकेली हूँ.
3 comments:
बेहतरीन , अपनी ही कशमकश का सजीव चित्रण
dil ko choo lene walo rachna...
thanks svandan ji
क्या बात है..खूब कहा!
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