Monday, March 30, 2009

समय फ़िर पीछे लौट आया है....

खवाबों के झूठे प्यालों में, मैंने
पिया है तेरी यादों का जाम
फ़िर-से.
देखो क्या नशा छाया है,
समय फ़िर पीछे लौट आया है।

देखूं मैं तुझको संग अपने,
चलने लगी तेरे हाथों को थाम
फ़िर-से।
देखो क्या नशा छाया है,
समय फ़िर पीछे लौट आया है।

प्यार-भरी बातें भी होने लगी,
तेरी बाहों में पिघलने लगी मैं, जैसे कोई मोम
फ़िर-से।
देखो क्या नशा छाया है ,
समय फ़िर पीछे लौट आया है।

मिलने की खुशियाँ फ़िर बढ़ने लगी,
और जवां भी होने लगी हर पिछली कसम
फ़िर-से।
देखो क्या नशा छाया है,
समय फ़िर पीछे लौट आया है।

साथ ये जो सदा रहता ऐसी किस्मत
अपनी कहाँ, जुदा हो ही गए हम
फ़िर-से।
देखो सपने में भी तुझको अलग पाया है,
समय भी क्या कभी पीछे लौट पाया है.

Thursday, March 5, 2009

मेरी प्यारी पड़ोसन...

*someone asked me to describe the sweetness about one of my fnd when I introduced her as "my sweet padosan"... n I said----
"भंवरों को होती रहती मुश्किल, मंडरते रहते आस-पास ऐसी मधुर वाणी...
वो चंचल-चित्त व आँखों में लिए हुए है मीठी शरारतों की कई निशानी...
चले जिस पग से, छोड़ जाए इक मीठी-सी गुदगुदाती कोई नर्म-सी कहानी...
चंदा भी मीठी-मीठी बातें करे देख उसके मन का सुन्दर रूप, चांदनी को भी होती परेशानी..."

Wednesday, March 4, 2009

चलो अच्छा हुआ तुम चले गए तो...



दर्द छिपाने की कोशिश में मैं क्या न करती गई।
कभी धूल के बहाने सच को पोंछती गई,
कभी होठों में झूठ के सौ रंग भरती गई।
कोई शिकायत नहीं, सबको बस यही कहती गई,
दूसरों में जब गिनाने लगे, तो तुम्हारा
परिचय भी मैं परायों में करती गई।
यही दस्तूर है जब सबकी खुशियों का,
तो मैं कंटीली राह ही सही, पर चलती गई।
नहीं मानती अब भी मैं ऊपरवाले को,
अपनी किस्मत को मैं ख़ुद ही लिखती गई।
कल तुम्हारा साथ लिखा था , आज उन्हीं
हथेलियों में बिछोह की लकीर खींचती गई।
क्या समझोगे तुम इस पीड़ा को, तुमको
जानने में जब सदियाँ भी मुझे कम लगती गई।
चलो अच्छा हुआ तुम चले गए तो,
कुछ दुनिया देख ली, कुछ समझदारी भी आती गई।

Tuesday, March 3, 2009

तुझको क्या अब कहूँ मैं.....



ये कैसा ज़लज़ला है,इस दिल में
हर पल जो उफ़नता रहता है.
कभी आँखों से बहता है,
कभी दिल से रिसता रहता है.

तुझको क्या अब कहूँ मैं,
दिल तो बस रोता रहता है.
कैसे यकीन कर डाला तुझपे,
ये कह के हँसता रहता है.

तेरी कीमत क्यूँ आंकी इस
दिल से मेरे,यही अफ़सोस अब रहता है.
अहसासों की कदर न रही जहाँ,
सरेआम बस तमाशा अब बनता है.

दर्द के इस तूफ़ान में फंस न जाए
कहीं तू भी मेरी तरह,
अपनी किस्मत से अब यूँ डर-सा लगता है.
इसलिए तेरे आँसू भी रख लिए
अपनी चादर के तले,
कि इस दर्द का असर तुझ-पर भी फ़ैल सकता है.