मैंने काँच की कटोरी;
मेरी सबसे प्यारी
काँच की कटोरी.
पीछे देखती हूँ तो बस
एक ही किस्सा
जी को झकझोरती है,
जब काँच कोई तोड़ा हो.
आज माँ बहुत याद आ रही है;
याद है अब भी मुझे जब
फ्रिज से रूह-अफ्ज़ा की बोतल
निकालते वक़्त मैं
संभाल नहीं पाई थी; सब
टूट के बिखर गए थे
मेरे चारों तरफ और
शर्बत भी पसर गए थे
मन में भय की तरह.
माँ की चपत पहली बार
महसूस की थी, बंद आँखों से
वो भी चपत खाने से पहले.
माँ दौड़ के आई थी,
मुझे गोद में उठा के
मेरे नंगे पाँवों को
अपने नंगे हाथों से झाड़ती हुई
और वो भी नंगे पाँव.
याद है अब भी मुझे
माँ का आँचल,
जिसमें शर्बत और काँच
दोनों लगे पड़े थे.
याद है मुझे, तब से
फिर कभी मैंने कोई
भी काँच नहीं टूटने दिए;
ऐसे सहेज कर रखती गई कि
फिर कहीं चुभ न जाये
मेरी माँ को.
आज पहली बार तोड़ी है,
मैंने काँच की कटोरी,
इस बार मगर जान-बूझ के.
बचपन के उस डर को
निकाल के कि, शायद
आज वो आँचल बहुत दूर है,
इस विश्वास के साथ,
या आज इस मन के
काँच के टूटने की आवाज़
माँ तक नहीं पहुँचेगी
इस विश्वास के साथ.
रोज़-रोज़ दरकने की
सहमी-सी आवाज़ सुनते हुए
थक चुकी हूँ मैं,
सो दे मारा ज़मीन पर
प्यारी कांच की कटोरी को.
इस बार पूरी तरह से
टूटने की आवाज़ आई थी,
कुछ समझ में आया था
अच्छी तरह से, पहली बार.
हाँ! आज पहली बार तोड़ी है,
मैंने काँच की कटोरी;
मेरी सबसे प्यारी
काँच की कटोरी.
सहमी-सी आवाज़ सुनते हुए
थक चुकी हूँ मैं,
सो दे मारा ज़मीन पर
प्यारी कांच की कटोरी को.
इस बार पूरी तरह से
टूटने की आवाज़ आई थी,
कुछ समझ में आया था
अच्छी तरह से, पहली बार.
हाँ! आज पहली बार तोड़ी है,
मैंने काँच की कटोरी;
मेरी सबसे प्यारी
काँच की कटोरी.
8 comments:
सुन्दर और भावुक कर देने वाली कविता !
वाह, बहुत अच्छी कविता है
आज वो आँचल बहुत दूर है,
वो आँचल बेशक दूर होगी पर शायद इतनी दूर भी नही होगी कि आज फिर माँ काँच के टुकडे न सहेज रही होगी.
वह किरंच (कांच के या शायद एहसास के) आज फिर माँ को चुभी होगी ----
बहुत सुन्दर रचना -- एहसास को बखूबी सजाया है आपने.
उस माँ को नमन
nice one
Hey Vandana.......malum nhi tha itna accha likhti ho.......abhi pura blog to nhi paga.......but really niceee..... :)
thanx anshul!
मदर्स डे पर इतनी सुन्दर कविता पढने को मिली, अच्छा लगा।
सुंदर भावपूर्ण रचना एक एक पक्ति में ममतामयी माँ की झलक आपने दिखाई धन्यवाद आपको ..........
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