Wednesday, January 19, 2011

एक शिकायती पन्ना-भर मेरी जिंदगी.....

कभी-कभी मैं अपने आप से ही उकता जाती हूँ. क्या करना है? यही नहीं पता है और जो कर रही हूँ तो क्यूँ कर रही हूँ? वो भी नहीं पता. जो नहीं करती, तो क्यूँ नहीं करती? वो भी नहीं पता. कभी लिखने का बहुत मन हो जाता है तो लिख के सुकून-सा लगता है, कुछ बोझ कम हो गया हो जैसे. तो कभी क्यूँ लिख कर बोझ को कम करूँ? यह सोच-सोच कर परेशान हो जाती हूँ. ये लिखने का तरीका भी अपनाते-अपनाते अब बोरियत-सी लगती है. कभी दौड़ने चले जाती हूँ, तो लगता है कि लोगो को देख कर खुशी मिल सकती है. कभी जब वापस कमरे में बैठती हूँ, तो लगने लगता है कि ये खुशी कभी टिकनेवाली नहीं है. तो क्यूँ मैं इसके पीछे-पीछे भागती रहती हूँ? हाँ, एक चीज़ सदैव साथ रहती है मेरी तन्हाई. मगर साथ देती है, तो पीछा छुड़ाने का मन करता है. शायद मैं अजीब ही हूँ. दुनिया में जोड़-घटाव तो लोग जन्मने के बाद से ही सीखने लगते है, मुझे क्या पड़ी थी कि ये सोचने की कि जोड़ क्यूँ और घटाव क्यूँ? ‘कुछ भी नहीं’ क्यूँ नहीं और ‘कुछ नहीं’ तो क्यूँ ‘कुछ नहीं’? सवाल-पे-सवाल और उसके बीच मैं. जो नहीं मिल पाता उससे दूर तो हो जाऊँगी धीरे-धीरे. मगर फिर किस पे जाके टिकूँ कि मुझे राहत मिले? कभी तो कोई क्षण हो, जो मेरे अनुसार बनी हो, जन्मी हो. मगर नहीं यहाँ पर इतनी चिल्लम-चिल्ली में मेरी बात कौन सुनेगा? और वो उपरवाला, उसे क्या कहूँ? कभी लगता है, मेरे साथ ऐसा हो रहा है तो क्या उसकी वजह वो तो नहीं? जब मैंने उसकी मूरत वाले सारे मूर्तियों को तोड़ कर अपना गुस्सा ठंडा किया था. शायद इसलिए वह मुझसे गुस्सा भी गया है, इसलिए मेरे रास्ते और टेढ़े-से-टेढा करते जा रहा है. मगर उसका क्या जो उस पण्डे ने पैसे लेकर तेरे नाम की पुड़िया दी थी. एक लाल चुनरी अब भी मेरे कमरे में रहती है, यह जताने के लिए कि मैंने तुम पे कितना विश्वास किया था. सरे झोलाछाप पूजा पर आखिर विश्वास ही तो किया था न. पूजा गलत हो सकती है, दिखावा हो सकता है, मगर क्या मेरा विश्वास गलत था? तुम्हारी चुनरी अब भी चमकती है, वैसे ही जैसी पहले थी. शायद तुम्हारे आस पास कुछ भी नहीं बदला हो, तो मेरी दुनिया क्यूँ बदली? अगर तुम मुझसे जुड़े हुए हो या मैं तुमसे, तो तुम्हे मेरे जीवन के बदलाव से फर्क महसूस क्यूँ नहीं होता? जैसे मुझे लगता है कि तुम बादलों के ऊपर अपने सिहांसन में बैठे मुझे देख रहे होगे तो तुम्हें क्यूँ नहीं दीखता कि मैं रो रही हूँ? मैं रो रही हूँ कि किस-किस पर विश्वास करती जाऊँ और हर उस बनते विश्वास को फिर तोड़ती भी जाऊँ. तुम को टूटने का दर्द पता है न? उस दिन जब तोड़ा था तुम्हें, तो तुम्हे शायद कहीं-से भी तो थोडा-सा दर्द हुआ होगा न. फिर भी नहीं समझते कि मुझे कितना दर्द होता है? कहते है जो होना होता है वो पहले से लिखा हुआ होता है, तो ये बताओ जब तुमने सब कुछ मेरे लिए निर्धारित करके रखा है, तो जो मैं कर रही हूँ वो मैं नहीं तुम करवा रहे होगे न. तो दोषी कौन? और सजा किसको मिले? मैंने तो नहीं लिखा था अपना किस्मत, तो मैं क्यूँ रोऊँ? तुमको लिखना आसान लगता होगा, इसलिए कुछ भी लिख देते होगे किसी के हिस्से में. कभी अपनी किस्मत में भी कुछ भी लिख लेते, तो मुझे भी तसल्ली होती.

39 comments:

सोमेश सक्सेना said...

वंदना जी आपकी मनोदशा समझ सकता हूँ, मैं भी अक्सर इन्ही दुविधाओं में उलझ जाता हूँ। बस एक ही फर्क है मैं ईश्वर से कोई संवाद नहीं करता।

उम्मीद करता हूँ आप जल्द ही इस स्थिति से बाहर निकलेंगी।

vandana gupta said...

वन्दना जी
आपकी स्थिति समझ सकती हूँ क्योंकि उसमे से गुजरी हूँ और ऐसा ही हाल भी हुआ है मगर इतना कहूँगी जब अंधेरा घनघोर होता है तभी उम्मीद की किरण झिलमिलाती है और जहाँ तक उससे शिकायत की बात है तो वो भी जायज है मगर ये भी उसका एक रूप ही है अपने प्यारे को अपने पास बुलाने का …………अच्छा ज़रा सोचिये ……यदि वो ऐसा ना करता तो क्या आप या हम उसके पास सच्चे दिल से जाये या उसे चाहे …………हम सभी आम प्राणी हैं इसलिये भूलभुलैया मे फ़ंसे रहते हैं मगर जब ठेस लगती है तभी समझ पाते हैं और करुण ह्रदय से जब पुकारते है तो वो दौडा आता है और हमे संभाल लेता है …………आखिर माँ बाप अपने बच्चे का रोना कब तक देख सकते हैं और दूसरी बात हम सब सिर्फ़ अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिये उसकी तरफ़ देखते है और जैसे ही पूरे हो जाते है सिर्फ़ रोजमर्रा का काम समझ उसे नमन करते है और काम मे लग जाते है मगर सोचिये क्या उसे दुख नही होता होगा कि जिसे मैने जिस काम के लिये भेजा वो काम तो वो कर नही रहा बल्कि दुनियादारी मे फ़ंसे जा रहा है और मेरा बच्चा चोट लगने पर ही मुझे याद करता है तो वो भी तो दुखीहोता होगा ना ………तब शायद उसे ऐसा कदम उठाना पडता है और जब हम उसके हो जाते है तो कही कोई कठिनाई नही रहती सब वो दूर करता जाता है मगर सच्चे मन से न कि वक्ती तौर पर्…………अरे आप बुरा नही मानियेगा मुझे ऐसा लगा जैसे जो आप कह रही है वो सब मै झेल चुकी हूँ तो आपके दर्द को समझ सकती हूँ इसलिये इतनी बात कह दी अगर कुछ बुरा लगे तो माफ़ी चाहती हूँ …………वैसे जब से उससे लगन लगी है अब कही कोई दुख दर्द नही है…………उसे हर पल अपने साथ महसूस करती हूँ और ज़िन्दगी का हर इम्तिहान कब और कैसे गुजर जाता है पता ही नही चलता…………… ये मेरा अपना अनुभव है।

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@सोमेशजी व वंदना जी: दुविधा तो लगे रहती है. ईश्वर है या कोई और या मेरे मन का ही कोई दर्पण है जिसके सामने बैठ कर कभी-कभी मैं ऐसे संवाद जरूर कर लेती हूँ. बस ये वो लम्हा है जिसमें मैंने शिकायत दर्ज की थी. उसकी सुनवाई के लिए मैं कोई आशा नहीं करती. जीवन में हर पल एक चुनौती है. इसका गुजर जाना सबसे बड़ा सच है जो मैं जानती हूँ. बस उस पल को जीने की क्रिया में हुई उथल-पुथल को लिख दिया. आशावादी तो हमेशा से हूँ. इसलिए जब भी मन कमजोर सा होने लगता है तो बस यही सोचती हूँ की यह भी गुजर जायेगा.

वंदना जी, आपकी बातो का बुरा भला क्यूँ लगेगा. आपने इतना समय दिया यह सोचने मात्र से ही खुशी मिलती है. आपका कहा हर एक शब्द सच है. जैसे इतने बाकि पल गुजरे थे वैसे ही ये भी गुजर जायेगे. इतना यकीन तो है ही. :-)

POOJA... said...

ऐसी situations आती हैं... आपको झुंझला देती हैं...
पर एक वक़्त आता है... और सब ठीक हो जाता है...
आशा है वो वक़्त जल्द ही आ जायेगा...

ZEAL said...

.

वंदना महतो जी ,

जब मन परेशान हों , उदास हो , तो कह कर मन हल्का कर लेना चाहिए। सुकून मिलता है। झगडा भी तो अपनों से ही किया जाता है। गुस्सा भी सिर्फ अपनों से ही दिखा सकते हैं। और इश्वर ही है जो अपना है। इसीलिए तो हम उससे शिकायत करते हैं। और अक्सर लड़ते हैं। और वो कभी बुरा नहीं मानते। अपनी कृपा दृष्टि हम पर बना कर ही रखते हैं।

मेरी इश्वर में असीम भक्ति है, और उसी इश्वर से प्रार्थना करुँगी की वंदना जी का जो भी मुश्किल का दौर है , उसे दूर कीजिये और उन्हें खुशियाँ दीजिये।

Love and regards,
Divya

.

vandana gupta said...

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (20/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

Creative Manch said...

हम तो पढ़ते पढ़ते खो गए
क्या प्रतिक्रिया दें :)
हम सबके मन का कमोबेश यही हाल है
मन को आशावादी होना चाहिए
यही उत्तम मार्ग है

मन की बातें साझा करने के लिए आभार

Shekhar Suman said...

क्या हुआ ???
क्यूँ इतना परेशान हैं, आपने खुद ही तो कहा था....
ये वक़्त भी गुजर जायेगा...
smiles.......!!!

राज भाटिय़ा said...

वाह जी आप ने तो हमे भी उलझा दिया, बाबा क्या जबाब दे, इतने सारे सवालो का, बस एक बात कहेगे, ज्यादा सोचना बन्द कर दो, बाकी सब अच्छा हो जायेगा अपने आप

The Serious Comedy Show. said...

हालात ठीक करने को आएगा मसीहा ,
तुमको भी इन्तेज़ार है,हमको भी इन्तेज़ार.

अमूर्त से बात.......अनोखा उदाहरण है.लोगों को सिर्फ प्रार्थना करते देखा है.

संजय भास्‍कर said...

वंदना जी
नमस्कार !
उदास हो , तो कह कर मन हल्का कर लेना चाहिए। सुकून मिलता है।...मन की बातें साझा करने के लिए आभार...आशा है वो वक़्त जल्द ही आ जायेगा...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज़िंदगी का एक पन्ना यह भी ....मन की उलझन स्वयं ही दम तोड़ देगी ...वक्त रुकता नहीं है ..

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ और हाँ वंदना जी, आपका कमेंट्स ठीक से मिल गया था.

@पूजा:आशा दिलाने के शुक्रिया दोस्त!

@दिव्या जी: आपकी दुआ मिल गयी यही बहुत है. बहुत बहुत धन्यवाद, शायद यह कहना भी कम लगेगा.

@वंदनाजी: चर्चा मंच में इस पोस्ट को शामिल करने के लिए धन्यवाद!

@ क्रिएटिव मंच: इतना में ही खो गए. अभी तो और खोना बाकी है. हे हे मजाक कर रही थी. मगर आप खोईयेगा नहीं. यहाँ आते रहे.

@ शेखर: smiling!!!!!!!!!!!!

@ भाटिया जी: नहीं सोचेगे. अब से आपकी बात को लॉक कर दिया गया है. धन्यवाद!

@ वर्मा जी: आपकी बातो से पूरी तरह से सहमत. चलिए देखते है ये इंतज़ार कब तक चलता है?

@संजय जी: इसी सुकून का ही तो सब चक्कर है!

@संगीता जी; बस जल्दी से नया वक्त आने का इंतज़ार है.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

vandna ji ,
ummeed par duniya kayam hai.
asha hi jeevan hai.
bindas lekhan ko pranaam !

सहज समाधि आश्रम said...

I really feel you reading the posts on your blog.

ManPreet Kaur said...

bouth he aacha blog hai dear.. aacha lagaa aapka post
Pleace visit My Blog Dear Friends...
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sonal said...

bas bah jaane do waqt ki ye lahar

Pratik Maheshwari said...

एक चीज़ जो ज़िन्दगी से सीखी है वो ये कि इसको सोचने में व्यर्थ न करो.. जीने में लगाओ..
ज्यादा सोच..ज्यादा परेशानी..

ज़िन्दगी को सरल रखिये.. मज़े में रहेंगी.. नहीं तो वही झांय-झांय हर दिन सताएगी.. :)

Yashwant R. B. Mathur said...

आप सब को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं.
सादर
------
गणतंत्र को नमन करें

Patali-The-Village said...

ज्यादा सोचना बन्द कर दो,अपने आप सब अच्छा हो जायेगा| आभार|

Anonymous said...

hey sweetie....kya hua...why u so sad sad...cheer up yaara...life aisi hi hai, avain hai....it sucks....excuse my language. par kya karein....jeena padta hai na....

by the way....long time....kahan ho...

Amrita Tanmay said...

गीता ...... सभी दुविधाओं का हल है ...कृपया अवश्य पढ़ें . परमात्मा आप पर दया बरसाए ..

Dr.Ajit said...

कभी-कभी यूँ ही झलक जाती है आंखे उदास होने का कोई सबब नही होता...जनाब बशीर बद्र
होता है ऐसा भी कभी-कभी

उम्दा अभिव्यक्ति

डा.अजीत
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दिगम्बर नासवा said...

पढ़ते पढ़ते कहीं खो जाता हूँ ... ख़त्म हुवा तो हकीकत में वापस आया ...
ये सच है की इसका जवाब बाबा भी नहीं दे सकते ...
अच्छी शैली है लिखने की ..

rashmi ravija said...

मन के उथल-पुथल को यूँ लिख डालना चाहिए..
.खुद से ये संवाद भी जरूरी है.

amar jeet said...

इस तरह की मनोदशा अक्सर होती है जब एकाकी मन एक अजीब सी सोच से गुजरता है परन्तु यही छण भी होता है स्वयं का जब हम आत्मविश्लेषण भी करते है
बसंत पंचमी की शुभकामनाए

Dorothy said...

देरी से आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूं. आशा का उजास आस पास फ़ैले हर तिमिर को हर ले, यही कामना करती हूं.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.

Kailash Sharma said...

आप की ज़िंदगी में खुशियों का वसंत आये यही शुभकामना है.

Kailash Sharma said...

आप की ज़िंदगी में खुशियों का वसंत आये यही शुभकामना है.

amrendra "amar" said...

एक वक़्त आता है जब सब ठीक हो जाता है...
आशा है वो वक़्त जल्द ही आ जायेगा...

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

एक लाल चुनरी अब भी मेरे कमरे में रहती है, यह जताने के लिए कि मैंने तुम पे कितना विश्वास किया था. सरे झोलाछाप पूजा पर आखिर विश्वास ही तो किया था न. पूजा गलत हो सकती है, दिखावा हो सकता है, मगर क्या मेरा विश्वास गलत था?

bahut sunder........ishwar se samwad........

waakai hamari puja jhunthi ho sakti hai, dikhwa jhoontha ho sakta hai lekin wishwaas kabhi jhoontha nahi hota............

हरकीरत ' हीर' said...

ज़िन्दगी ऐसी है पहेली
कभी ये रुलाये
कभी ये हंसाये ......

अच्छी लगी आपकी मासूम सी उदासियाँ .....

मुकेश कुमार सिन्हा said...

jindagi issi ko kahte hain...sirf sukh ke saath aur har kuchh waise hona...jo aap soche..fir kya jindagi..:)

jab tak dukh na ho, duvidha na ho...pareshaniyan na ho...fir pata kaise chalega...ki hamare me hai kitna dumm:)

Anand Rathore said...

back ..

abhi said...

वंदना...बहुत हद तक तुम मेरे जैसी हो....पढकर तो यही लगा...:)

abhi said...

तुमने भी बहुत दिन से कुछ नहीं लिखा...अरे कुछ तो लिखो....और हो सके तो कुछ मेरे बारे में प्लीजज्जज्ज :D :D

मैं तो आज आया था ये समझ के की बहुत दिन से तुम्हारा ब्लॉग नहीं पढ़ा...तो दो तीन पोस्ट एकसाथ पढ़ने होंगे ;)

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) said...

@ अभि: हाँ मैंने बहुत दिनों से लिखना और पढ़ना दोनों ही बंद रखा है. लेकिन इत्तेफाक से कल ही एक और ब्लॉग भी बनाया है. पता नहीं कैसा लगे तुम्हे, मन करे तो वहाँ भी घूम आना. और तुम्हारे बारे में और सबके बारे में भी लिखेगे. तनिक धैर्य रखो. हे हे हे....

Yashwant R. B. Mathur said...

आप को सपरिवार होली की हार्दिक शुभ कामनाएं.

सादर

रश्मि प्रभा... said...

puri umra ise rassakassi me bit jati hai