Sunday, December 23, 2012

कठपुतली.....


मुझे बना लो अपनी हाथों की कठपुतली,
और फिर छुपा लेना अपनी आँखों में।

न मैं जानना चाहूँ, क्या है तुझमें,
न मैं कुछ सोचूँ, क्यूँ हूँ मैं तुझमें।

इतना मुझे तुम बस हक दे देना,
किरचें मुझसे होके ही तुम्हें चुभना।

बस रोशनी की ही तुम यूँ परवाह करना,
और उस पल मुझे किसी किनारे रख देना।

मैं तारों से लोरी रोज़ चुन-चुन कर लाऊँगी,
फिर उन्हें बिछाकर तुम्हें तुम्हारी कहानी सुनाऊँगी।

एक साँकल चोर दरवाजे का अपने हाथ रखूँगी,
जीवन में तुम्हारे बस इतना ही सेंध लगाऊँगी।

खुशियों का अधिकार दे देना तुम सबके नाम,
आँसू की कीमत हो सिर्फ मेरे नाम पे नीलाम।

तुम हँसना मेरी बेतुकी हरकतों पर कभी-कभी,
मैं जोकर की जोकर बन कर फिर जी लूँ तभी।

तोड़ना-मरोड़ना जब जी चाहे तुम मुझसे लड़ लेना,
बिना लकीर वाली कोई किस्मत मुझको बना लेना।

इस तरह तुमसे ताउम्र जुड़े रहने की इच्छा रखना,
कि एक अविश्वास की नोंक पे सदियों दूर चले जाना।

बस इतने पल बना लो अपनी हाथों की कठपुतली,
बस इतने पल फिर छुपा लेना अपनी आँखों में।

बस इतने पल बना लो अपनी हाथों की कठपुतली,
बस इतने पल फिर छुपा लेना अपनी आँखों में।

8 comments:

SANDEEP PANWAR said...

कठपुतली बने बिना ज्यादा अच्छा है।

मुकेश कुमार सिन्हा said...

:)
मुझे बना लो अपनी हाथों की कठपुतली,
और फिर छुपा लेना अपनी आँखों में।
behtareen...!!

Onkar said...

सुन्दर रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज भी क्यों चाह है कठपुतली बनने की ????

भावपूर्ण रचना

प्रवीण पाण्डेय said...

कोमल भाव समेटे सुन्दर कविता।

Nidhi said...

इतना मुझे तुम बस हक दे देना,
किरचें मुझसे होके ही तुम्हें चुभना।...सुन्दर!!

Madan Mohan Saxena said...

मैं तारों से लोरी रोज़ चुन-चुन कर लाऊँगी,
फिर उन्हें बिछाकर तुम्हें तुम्हारी कहानी सुनाऊँगी।
एक साँकल चोर दरवाजे का अपने हाथ रखूँगी,
जीवन में तुम्हारे बस इतना ही सेंध लगाऊँगी।

वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

Rahul Ranjan Rai said...

मुझे बना लो अपनी हाथों की कठपुतली,
और फिर छुपा लेना अपनी आँखों में।
superb......