Wednesday, January 28, 2009

क्यूँ वो मेरी तरह नहीं है सोचता.....



सिर्फ समय ही जब मिटा सकता है,
तो फिर बनाता क्यूँ है ये नाता.
क्यूँ उसकी ही मर्ज़ी पे चलता है,
जीवन का हर तिनका-तिनका.
जब उससे ही हर तार जुड़े हैं,
तो क्यूँ मेरे ही आँखों से है रिसता.
ख़ुशी में तो वो भी खुश होता होगा,
पर क्या दुःख में वो भी भागी है होता .
मालूम नहीं क्या समीकरण है उसके,
पर इक हँसता तो दूसरा क्यूँ है रोता.
जब-जब भीड़ बढ़ी जीवन में मेरे,
तो कण-कण में बस वो ही है दीखता.
जब चुप्पी की चादर ओढाई उसने,
क्या उसके किसी-भी कोने में वो है बसता.
कैसे मान लूँ मैं दुःख में उसकी भी साझेदारी,
जब स्वयं मन इसको नहीं है स्वीकारता.
जब उसकी ही कोई इक परछाई हूँ मैं,
तो फिर क्यूँ वो मेरी तरह नहीं है सोचता.....

Monday, January 26, 2009

तुम हो तो....

तुम हो तो लगता है, जीने की और मोहलत मिल गयी हो जैसे,
तुम हो लगता है, ज़िन्दगी और भी हसीन हो गयी हो जैसे,
तुम हो तो लगता है, हर चीज़ मुमकिन बन गयी हो जैसे,
तुम हो तो लगता है, हर मंजिल मिल गयी हो जैसे,
तुम नहीं तो लगता है, ये ज़िन्दगी सज़ा बन गयी हो जैसे...

Friday, January 23, 2009

फिर यही वक़्त आएगा..



सुनो तुम आज जो
जा रहे हो अपने रास्ते,
बीच राह में अकेले छोड़े जा रहे
हो न जाने किसके वास्ते.
देखना इक दिन
यही वक़्त घूम के फिर आएगा,
मेरी तरह जब
तू भी अकेला रह जायेगा.
तब शायद सुन सको
इस मन की टूटन को,
पर चाह कर भी तोड़ न सको
जो भूले आज इस बंधन को.
इसलिए डर कि जिस दर्द को
आज तू देखना भी न चाह रहा है,
कल तू भी गुजरेगा इस पल से,
आज जिसमें मेरा दम घुट रहा है.

Thursday, January 22, 2009

क्यूँ आये मेरे इतने पास.....



तुम चुप क्यूँ रह गए,
क्यूँ मेरी आस तोड़ न गए.
क्या भला किया तुमने
मेरे साथ बुत बन के.
क्यूँ नज़रें झुकाए रखी कि पढ़
न पाऊं अक्षर तेरे मन के.
बोल जो दे देते
दो कड़वे बोल सच के.
मन हलका तो हो जाता
ये ज़हर पी के.
क्या अंतर आ गया
कल और आज में.
क्यूँ दूरी बढ़ी अब,
नजदीकियां बनी जिस समाज में.
क्यूँ याद आया अब तुमको
तुम्हारी मजबूरी.
कहाँ गयी वो हिम्मत
जो पहना गयी हमें प्यार की डोरी.
क्यूँ इतना चाहा तुझको,
क्यूँ किया इतना विश्वास.
रहना था दूर तो
क्यूँ आये मेरे इतने पास....

Wednesday, January 7, 2009

मेरा सपना....



खामोशियों के माहौल में,
तनहाईयों की गोद में,
लमहों के दरमियान मेरा सपना पल रहा है....

तुम चुपके से आना,
आहिस्ते-से देख जाना,
मेरा सपना अभी तो सो रहा है....

जागे जब नींद से वो,
देखूं उसकी मुस्कराहट तो,
सोचूं फिर मैं, कैसा वो लग रहा है....

दुनिया मगर बड़ी मतलबी ही है,
जिसे देखो उसे तोड़ने में ही लगी है,
ये नींद में बेखबर, क्या पता बाहर क्या हो रहा है....

जब मिलेगी सपने से मेरे,
क्या होगा हश्र इसका,
जहाँ हर दूसरे का सपना छन् से टूट रहा है....

वो जो जागेगा जब नींद से,
सामना होगा फिर हकीकत से,
क्या फिर-से सो पायेगा, अभी जैसे सो रहा है....

Tuesday, January 6, 2009

कठपुतली मैं, बिन डोर...



कठपुतली तो बना दिया तुमने
सिखा भी दिया कैसे है हँसना...
दो पग चला के गिराते थे,
कि सीख जाऊं मैं फिर से चलना...
हर डोर को जब कस लिया अपने हाथों से,
इस मन को भी संगी बना लिया मीठी बातों से,
ढाल ही लिया जब अपने रंग में,
जब कर लिया पूरा अधिकार..
जब मन ने सच में चाहा
होना तुझ संग ही अंगीकार...
कौन-सी आंधी वो आई,
जो तोड़ गयी तुमसे जुड़ी हर डोर...
तुम दूर छिटक के बंध गए किस आँचल से,
कठपुतली ही रह गयी मैं, वो भी बिन डोर...

सौदागर.. न सौदा कर



सपनों के सौदागर
न सौदा कर,
इन लमहों का,
क्या मोल इसका तुम दे पाओगे,
क्या मेरी तरह इन्हें फिर से जी पाओगे?
क्या कीमत है तुम्हारे लिए
जिनमें हर सांस मेरी अटकी हुई है...
क्या जरूरत है तुम्हारे लिए
जिनमें हर बात बनती-बिगड़ती रही है,
ऐसे जीवन का तुम क्या मोल दोगे,
जो सिर्फ सिसकने के लिए बनी हुई है...
अब कौन-से सपनो को दाँव में लगाओगे,
जहाँ पहले से ही हर सपने दाँव में लगे हुए है...

Monday, January 5, 2009

ये टुकड़े अब किनके लिए है....



कोई कब्र पर भी आके मुंह फेरे खड़े हुए है,
इक हम है जो उनकी याद में कबसे ऐसे ही पड़े हुए है...
इक आंसू भी अब मेरे नाम का नहीं बचा,
हम उनकी तकदीर से अब ऐसे पिछड़ गए है...
वक़्त और मुसाफिर कहाँ किसी के होके रहे है,
जाने जिंदगी में वो कितने रास्ते बदलते रहे है...
रास्ता हूँ या मझधार मैं; जो मंजिल उनकी, उनका ही किनारा,
बीच में बस हम ही खड़े रह गए है...
जिंदा थे हम भी कभी; अब भी उनको पता नहीं,
मिटटी का ढेला ही समझकर बस खेलते रहे है...
वो तोड़ के वजूद जो मेरा अपनी राह चल दिए है
कहना उनसे ये टुकड़े अब किनके लिए है...