Thursday, January 22, 2009

क्यूँ आये मेरे इतने पास.....



तुम चुप क्यूँ रह गए,
क्यूँ मेरी आस तोड़ न गए.
क्या भला किया तुमने
मेरे साथ बुत बन के.
क्यूँ नज़रें झुकाए रखी कि पढ़
न पाऊं अक्षर तेरे मन के.
बोल जो दे देते
दो कड़वे बोल सच के.
मन हलका तो हो जाता
ये ज़हर पी के.
क्या अंतर आ गया
कल और आज में.
क्यूँ दूरी बढ़ी अब,
नजदीकियां बनी जिस समाज में.
क्यूँ याद आया अब तुमको
तुम्हारी मजबूरी.
कहाँ गयी वो हिम्मत
जो पहना गयी हमें प्यार की डोरी.
क्यूँ इतना चाहा तुझको,
क्यूँ किया इतना विश्वास.
रहना था दूर तो
क्यूँ आये मेरे इतने पास....

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