खामोशियों के माहौल में,
तनहाईयों की गोद में,
लमहों के दरमियान मेरा सपना पल रहा है....
तुम चुपके से आना,
आहिस्ते-से देख जाना,
मेरा सपना अभी तो सो रहा है....
जागे जब नींद से वो,
देखूं उसकी मुस्कराहट तो,
सोचूं फिर मैं, कैसा वो लग रहा है....
दुनिया मगर बड़ी मतलबी ही है,
जिसे देखो उसे तोड़ने में ही लगी है,
ये नींद में बेखबर, क्या पता बाहर क्या हो रहा है....
जब मिलेगी सपने से मेरे,
क्या होगा हश्र इसका,
जहाँ हर दूसरे का सपना छन् से टूट रहा है....
वो जो जागेगा जब नींद से,
सामना होगा फिर हकीकत से,
क्या फिर-से सो पायेगा, अभी जैसे सो रहा है....
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