इक दिन ऐसा हो-
जब मैं न करूँ
कोई भी सवाल तुमसे,
तुम भी जवाब देना
भुल जाना.
इक दिन ऐसा हो-
जब हम बन जाए
फिर-से अनजाने,
और कोशिश भी न करे
इक-दूसरे को जानना.
इक दिन ऐसा हो-
जब हँसना न पड़े
झूठ-मूठ का तुम्हें,
और न ही उत्तरस्वरूप
मुझे भी पड़े मुस्कुराना.
इक दिन ऐसा हो-
जब तुम तोड़ जाओ
हमेशा के लिए दिल मेरा,
और मैं भी न चाहूँ
दोबारा खुद को जोड़ना.
इक दिन ऐसा हो-
जब मुझको हिचकी
आए भी तो,
दूर कहीं तुम भी
न खाँसना.
इक दिन ऐसा हो-
जब तुम्हारे दर्द पर
तुम ही सिर्फ रोना,
और मेरे आँसू मेरे ही
आँखों से चाहे निकलना.
इक दिन ऐसा हो-
जब वक़्त ही न मिले
कुछ सोचने को,
और मैं भूल जाऊँ
इन पन्नों को बेवज़ह नम करना.
4 comments:
इक दिन ऐसा हो-
जब मैं न करूँ
कोई भी सवाल तुमसे,
तुम भी जवाब देना
भुल जाना....
एक नहीं भुला देने वाली रचना बन पड़ी है.
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soham ji nahi bhulne ke liye bahut bahut shukriya!!!!!!!!!!!!!!
i think best one... javed sahab ki ek nazm yaad aa gayi
aao aur na socho..soch ke kya paaoge..jitna bhi sochoge utna pachtaoge..
tum jis ehsaas ki manzil pe pahunchi ho
wo meri dekhi bhali hai..
jaane bhi do kab tak iskka shog manana
ye duniya andar se itni kyun kaal hai..aao jeene ka samaan karen hum ..sach ke haathon jo bhi humne mushkil paayi..jhooth ke haatho wo mushkil asaan karne hum..
aage hai
jab tak apna mel rahega, dekho achcha khel rahega..
jab jee bhar jaaye kah dena beet gaya milne ka mausam..
padhna kahin mile to..
जी राठौर जी ! मौका मिला तो जरूर पढूंगी.
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