कब तक तुम मुझसे बातें करोगे,
कब तक मैं फोन को घूरा करुँगी;
कब तक तुम मेरी हर खबर लेते रहोगे,
कब तक मैं तुमसे सारा संसार बुना करुँगी;
कब तक तुम अपनी उलझन में मुझे बाँधा करोगे,
कब तक मैं इस घुटन से बाहर निकलूँगी;
कब तक तुम मुझको इतना सताते रहोगे,
कब तक मैं तुम्हें याद कर लिखती रहूँगी;
कब तक मेरी बात अपने दोस्त तक भेजा करोगे,
कब तक तुम्हारी कविता मैं उसे सुनाया करुँगी;
कब तक पन्नों पर तुम पर शक़ की जगह लेते रहोगे,
कब तक तुमपे झूठ की चादर डाल दिया करुँगी;
कब तक तुम मुझे गुमराह किया करोगे,
कब तक और मैं तुम्हारी राह तका करुँगी;
कब तक तुम मौन बन सब बोल जाया करोगे,
कब तक मैं इतना कह के भी चुप रहा करुँगी;
कब तक बोलो कब तक?
कब तक तुम मेरा मन रखा करोगे,
कब तक मैं भी अपना मन तुम्हारे लिए रखा करुँगी.....
6 comments:
कब तक तुम मुझे गुमराह किया करोगे,
कब तक और मैं तुम्हारी राह तका करुँगी;
वाह!!!!बहुत खूब. अतिसुन्दर.
vandana ji blog me aane ke liye aur sarahana ke liye dhanyawad..... waise aapko kuch kehna aisa lag raha hai jaise khud ko keh rahi hun....
हे प्यार
तुम महान चक्र के केंद्र रहे हैं.
तुम सब के आसपास घूमता.
तुम बार बार सोच,
मैं प्रेरणा मिल.
मेरे दिल में आओ
और मेरे सारे कामों में रहते हैं.
आओ, ताकि आपके पैरों की गुलाबी जोड़ी
मेरे दिल को दिन और रात में रह सकती है
और मुझे अत्यंत पूरा दे.
यहां तक कि तुम्हारे होंठ नहीं बोलना चाहिए,
चुपचाप मुस्कुराते जारी,
कगार पर मेरे दिल भरने.
jab tak aash hai tab tak... kabir sahab ko sab jaante hain...aap bhi janti hongi...wo ek mahan sant the.. duniya ko sikhane ke liye khud se sawal karte the aur khud javab dete the..unki likhne ki ye shaili mujhe bahut pasand hai..
kahte hain..
मन मरे , अजपा मरे , अनहद भी मर जाए
सुरती निरति दोनों मरे तो जीव का में समाये..
यानी - शरीर मरता है, मन मरता है. भीतर होने वाला नाद भी मर जाता है , तो ये जीव आत्मा कहाँ जाती है
उनका जवाब है
जहाँ आशा , वहां बासा ..
जीवन का, प्रेम का , संघर्ष का, मूल आशा है ..जब तक आश है कोशिश है , संघर्ष है ... वेदना है, उलाश है.. हम हैं तुम हो ..संसार है. जिस दिन आश का धागा टूटा , उस दिन मुक्ति है..हर चीज़ से मुक्ति .. दुःख से संताप से..कशमकश से.. तो जब तक आश है तब तक ..
राठौर जी, एक नयी आस देने के लिए शुक्रिया. सबसे ज्यादा पसंद आई तो यह ----- मन मरे , अजपा मरे , अनहद भी मर जाए
सुरती निरति दोनों मरे तो जीव का में समाये. पहली बार सुना है, मगर अब हमेशा यद् रखूगी.
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