तुम्हारी याद से मैं
लड़ती रहती हूँ;
कई बार विनती भी
कर चुकी हूँ मैं.
कि मुझे नहीं सुनना
अब तुम्हारी बातें;
तंग आ चुकी हूँ मैं
बार-बार यही दोहराते.
हर बार तुम मुस्काते-से
नज़र आते हो;
हर बार तुम्हारी महक
फ़ैल सी जाती है जैसे.
हर बार गालों को थपका
चुपके-से तुम भाग जाते हो;
हर बार तुम्हारी आह्ट पर
मैं खिल से जाती हूँ जैसे.
नहीं, मुझे और नहीं
लुका-छिपी तुमसे है खेलना;
नहीं, मुझे और नहीं
सपने में तुम्हें ही है देखना.
इसलिए, कह दो अपनी यादों से
मुझे इतना प्यार न करे,
जितना तुम मुझे
कभी कर न सके.
8 comments:
kya khoob aapne ehsaas ko shabdon ka rup diya hai...
Mashaallah !
good one ..keep it up !
very nice post!!!!!
God post ...:)
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
aapki tareef ke liye
thnax to all!!!!!
very nice post!!!!!
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