मैं तुम्हें सिर्फ
इक ही रंग
दे सकती हूँ।
तुम जब भी
अपने गालों को छुओगे,
देखना, कुछ प्यार-सा रंग
हाथ में भी आ जाएगा।
जो आँखों से छलके
अपनों से दूरियों का एहसास,
ममता के रँग में रँगा
इक आँचल तुम्हें हवा कर
जाएगा।
जो होगे कभी
यूँ ही उदास तुम,
यह भी दुख की स्याही से
लिखा हुआ कोई अक्षर
बन जाएगा।
जो कभी द्वेष मन में सँजोये,
उद्वेलित होने लगो तुम,
तो यह भी क्रोध के तम में
जलकर आग बन जाएगा।
तुम जिस भाव से
इसे लगाओगे,
उस भाव में निहित
रँग ही बस
उभर कर आएगा।
इसलिए हाँ !
मैं तुम्हें सिर्फ
इक ही रँग
दे सकती हूँ।
15 comments:
बहुत सुंदर रंग है आपके पास ... और हर एक को इसी रंग की चाहत ...
होली की शुभकामनायें
मन के रंग कोउ न जाने,
सब अपना अन्तर पहिचाने..
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
बेहतरीन रंग संयोजन है आपका ...जोकि रंग पर नहीं बल्कि लगवाने वाले के भावों पर निर्भर है !
जो कभी द्वेष मन में सँजोये,
उद्वेलित होने लगो तुम,
तो यह भी क्रोध के तम में
जलकर आग बन जाएगा
बेहतरीन पोस्ट।
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
सादर
बहुत खूबसूरत रचना....
life is beautiful....and so is ur poetry....
regards.
प्रेम के विविध रंगोंको बहुत ही खूबसूरतीसे उकेरा है आपने ....बहुत प्यारी रचना
nice to see ur blog n ur beautiful work! keep it up//
regard
बड़ी प्यारी रचना...
होली की बधाईयाँ...
bahut hi sundar or pyari rachana hai..
आपको नव संवत्सर 2069 की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ।
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कल 23/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
thanx yashwant.....
is post ko shamil karne ke liye bahut bahtu dhanyawad.
waise main ab bhi kisi bhi blog par comment nahi kar pa rahi hun.
"तुम जिस भाव से
इसे लगाओगे,
उस भाव में निहित
रँग ही बस
उभर कर आएगा।"
सुन्दर अभिव्यक्ति!
वंदना,
रंग दीनी....
ऐसा चढ़ा है के उतरा नहीं!!!
आशीष
--
द नेम इज़ शंख, ढ़पोरशंख !!!
ये एक रंग अनमोल है.. सभी रंगों पर भारी पड़ता हुआ.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
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